गोविंद वल्लभ जोशी
भारतीय पद्धति मानव को जीवन मूल्यों के उत्कर्ष की ओर ले जाती है। प्रकृति के नियमों के साथ सामंजस्य स्थापित कर तन-मन को स्वस्थ रखकर चिरायु का वरदान मिलता है, इसीलिए हमारे ऋषियों ने स्नान, जप, तप एवं व्रत पर्वों का महत्व बताया है। सूर्य के उत्तरायण होते ही प्रारंभ होने वाले माघ मास में स्नान का विशेष महत्व है। इस महीने सूर्य मकर राशि में रहते हैं जिसके प्रभाव से जल में पड़ने वाली सूर्य किरणों से अमृत योग बनता है, इसीलिए श्रद्धालु जन नदियों के संगमों पर स्नान-दान-जप कर्म में तत्पर रहते हैं। इस वर्ष 14 जनवरी को मकरसंक्रांति से माघ प्रारंभ हो गया है, लेकिन 28 जनवरी तक पौष शुक्ल पक्ष होने के कारण माघ स्नान 28 जनवरी पौष पूर्णिमा से 27 फरवरी को माघी पूर्णिमा तक चलेगा। इस माह प्रयागराज में गंगा-यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर स्नानार्थियों का कल्पवास होता है। माघ मास में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से माघ कहा जाता है। माघ स्नान करने से मनुष्य समस्त दोष एवं पापों से मुक्त हो जाता है, ऐसा शास्त्रों का कथन है।‘माघे निमग्ना: सलिलं सुशीले विमुक्त पापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।’
माघ माहात्म्य बताते हुए पद्म पुराण में कहा गया है कि व्रत, दान, तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, साथ ही मनुष्य समस्त पातकों से मुक्त होकर वासुदेव श्री हरि का कृपा पात्र बन जाता है। ‘प्रीतये वासुदेवस्य सर्व पाप मुक्तये माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्ग लाभाय मानव:।’
माघी पूर्णिमा को स्नान, दान, पुण्य से मनुष्य को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
‘पुराणं ब्रह्म वैवर्त यो दद्यान्माघमासि च पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।’
गोस्वामी तुलसीदास प्रयागराज में माघ स्नान का महत्व बताते हुए कहते हैं, सूर्य के मकर राशि में आने पर माघ मास में समस्त देवता, पितर एवं ऋषि अपनी दिव्य शक्तियों के साथ प्रयागराज में आकर एक मास पर्यन्त निवास करते हैं। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा है, माघ मास की अमावस को प्रयागराज में तीस करोड़ दस हजार तीर्थ उपस्थित होते हैं, अत: जो मानव व्रत उपवास नियमों का पालन करते हुए माघ स्नान करता है, वह स्वर्ग पाता है।
वस्तुत: माघ स्नान का भारतीय जीवन में बहुत महत्व है, संगम अथवा पवित्र सरोवरों में स्नान के लिए लोग पहुंचते हैं, स्नान के बाद दान पुण्य एवं पितरों की प्रसन्नता के लिए तर्पण एवं दान का इस माह में विशेष महत्व बताया है। शास्त्रों में यह भी कहा है कि दान देने वालों को अपने को दानी मानने का अहंकार नहीं आने देना चाहिए, साथ ही जिसको आप दान दे रहे हैं उसके प्रति दीन-हीन होने का भाव भी नहीं आना चाहिए। जो लोग गंगा, तीर्थों में नहीं आ पाते उन्हें घर पर ही प्रात: स्नान करते हुए गंगा आदि पवित्र नदियों का स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए। मंत्र श्लोक भी नहीं आते हैं तो हर-हर गंगे का उच्चारण करते हुए स्नान करने से उन्हें गंगा तीर्थ स्नान का पुण्य प्राप्त होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।