केंद्र सरकार ने सरकारी स्वामित्व वाली, जैसे बीमा, बैंकिंग, उर्वरक, रक्षा उपकरण, इस्पात, पेट्रोलियम और अन्य क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाया है, जो जनहित में भी बहुत आवश्यक है। सरकार के इस कदम का कुछ संगठनों ने विरोध करना भी शुरू कर दिया है, जो अनुचित है। विरोध करने वालों से ये पूछा जाना चाहिए कि क्या वे लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में नहीं भेजते हैं? और निजी अस्पतालों में अपना इलाज नहीं करवाते हैं? अगर यह सही है तो फिर निजीकरण का विरोध क्यों?
राम मूरत ‘राही’, सूर्यदेव नगर, इंदौर
नियमन जरूरी
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। प्रिंट मीडिया तो अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है लेकिन इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का गिरता स्तर देश के लिए बहुत ही चिंता का विषय है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। कारण साफ है टेलीविजन पर भयावह तरीके से समाचार पेश करना और बेकार के मुद्दों पर डिबेट करवाकर आपसी खींचतान करवाना, ऐसा लगता है कि टीवी का एंकर अभी गोली चला देगा। बहस के दौरान एक-दूसरे पर चिल्लाकर सभी मर्यादाओं को ताक पर रख दिया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर नियंत्रण के लिए कोई ठोस कानून बने।
सुनील सहारण, फ़तेहाबाद
सोच बदलें
आज 21वीं सदी में भी दुनिया में लैंगिक असमानता है। देश भी इससे अछूता नहीं है। देश की लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। वहीं दूसरी तरफ अभी भी भारत के कुछेक रूढ़िवादी विचारधाराओं और धर्म के ठेकेदार लड़कियों के प्रति संकीर्ण सोच रखे हुए हैं। भारत का सशक्तीकरण तब तक नहीं हो सकता, जब तक हर वर्ग के शत प्रतिशत लोग लड़का-लड़की के बीच भेदभाव की संकीर्ण मानसिकता नहीं त्याग देते।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
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