सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई कमेटी की पहली बैठक के बाद कमेटी ने तीनों कृषि कानूनों को किसानों के हक में बताया है। लेकिन किसान संगठनों ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया है। किसान जिन कानूनों को वापस लेने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, उनमें एक कानून आपातकाल के अलावा हर वक़्त भंडारण की भी अनुमति देता है। इसके फलस्वरूप आमजन के लिए भी खाद्य सामग्री महंगी होने की बहुत संभावनाएं हैं। लेकिन सरकार की यह बात भी सही है कि कानूनों को वापस लेना संभव नहीं।
सुमित कुमार चौधरी, अम्बाला
आक्रामकता नहीं हल
20 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित राजकुमार सिंह के ‘आक्रामक राहुल गांधी बदल पाएंगे कांग्रेस की किस्मत’ लेख पार्टी की नब्ज पर हाथ रखने वाला था। जरूरत इस बात की है कि पार्टी संगठन को मजबूत किया जाए। ऐसी ही आक्रामकता राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार के दौरान प्रस्तावित विधेयक की प्रतियां फाड़ कर दिखायी थी। उसके बाद मोदी सरकार सत्ता में आई थी। जरूरत संगठन को मजबूत करने और जनाधार बढ़ाने की है। विचारोत्तेजक लेख हेतु साधुवाद!
मधुसूदन शर्मा, रुड़की, हरिद्वार
महापुरुषों की राह
19 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘महापुरुष ही नहीं, उनके विचार भी अपनायें’ राजनीतिक क्षेत्र में बढ़ते स्वार्थ का खुलासा करने वाला रहा। चुनावी उम्मीदवार महापुरुषों का अनुसरण मात्र वोट बैंक भुनाने के लिए करते हैं। चुनाव जीतने के बाद वादे, जनता का विश्वास धराशायी हो जाता है। उनकी करनी और कथनी में काफी अंतर दिखाई पड़ता है। जनहित राजनेताओं की आंखों से ओझल हो जाता है। स्वच्छ राजनीति महापुरुषों के आचरण के अनुसरण से ही संभव है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल