संवेदनशील कथाकार डॉ. ज्ञानी देवी ने अपने पहले उपन्यास में ग्राम्य और नारी जीवन के यथार्थ को संवेदनशील ढंग से उकेरा है। जैसा कि उपन्यास का शीर्षक है ‘सूखती नदी, खिलता कमल’, रचना भी तमाम सामाजिक विसंगतियों व विद्रूपताओं के बावजूद संघर्षशील स्त्री की जीवटता को बयां करती है। कह सकते हैं उपन्यास मौजूदा परिवेश में संघर्षशील स्त्री की जिजीविषा को दर्शाता है। उसकी घुटन को बयां करता है। पुरुषवादी समाज में जूझती स्त्री की कहानी बताती है कि बाहर से बदलता दिखाता समाज भीतर एक विषैला वातावरण लिये हुए है। इसके बावजूद स्त्री निरंतर आगे बढ़ने को कृतसंकल्प है। कथा नायिका लाड़ो महज एक नाम नहीं, संघर्षशील स्त्री का पर्याय है जो कथित उदार दिखते समाज में अपनी अस्मिता को लेकर छटपटा रही है।
पुस्तक : सूखती नदी खिलता कमल उपन्यासकार : डॉ. ज्ञानी देवी प्रकाशक : ज्योति प्रकाशन, सोनीपत पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 300.