प्रकाश मनु
नन्हीं सी थी मीशा, पर कुछ न कुछ सोचती रहती थी। या फिर हर पल कुछ न कुछ करती रहती थी। अपना स्कूल का काम पूरा करके कहानियों की किताब उठा लेती। और पढ़ती तो उसमें डूब ही जाती। सोचती, ‘मैं तो बस पढ़ती ही जाऊं, पढ़ती ही जाऊं…!’ अभी कुछ देर पहले जो किताब उसने पढ़ी, उसमें एक गरीब बच्चे की कहानी थी। वह पढ़ना चाहता था, पर पढ़े कैसे? उसके मम्मी-पापा के पास स्कूल की फीस देने के लिए पैसे नहीं थे। कापी-किताबों के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए वह एक स्कूल के बाहर बैठ जाता। हाथ से जमीन पर लकीरें खींच-खींचकर गिनती लिखता, पहाड़े लिखता, क ख ग लिखता।
फिर एक दिन स्कूल के हेड मास्टर जी ने उसे देखा तो हैरान होकर बोले, ‘अरे, तुम तो इतने होशियार हो। कल से तुम स्कूल पढ़ने आओगे। तुम्हारी फीस मैं दूंगा।’ बस, उस दिन से बच्चे के जीवन में नयी खुशियां आ गईं।…
कहानी पढ़ते-पढ़ते मीशा सोच में डूब गई। बार-बार एक ही बात उसके मन में आ रही थी, ‘ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि सब बच्चे पढ़ें? अगर सारे बच्चे स्कूल पढ़ने जाएं तो दुनिया कितनी अच्छी होगी? सचमुच कितनी सुंदर…!’ उसने मम्मी से कहा तो मम्मी बोलीं, ‘ठीक है मीशा, तू बड़ी होगी तो उन बच्चों को पढ़ाना जो स्कूल नहीं जा पाते।’ मीशा बोली, ‘हां मम्मी। मैंने भी यही सोचा है।’
पर मीशा को क्या पता था कि वह बहुत जल्दी एक नन्ही टीचर बनने वाली है। हुआ यह कि अगले ही दिन मीशा स्कूल से आकर होमवर्क कर रही थी। तभी उसने देखा, घर में काम करने वाली कालिंदी चाची आई, तो उसके साथ में एक छोटा-सा बच्चा भी है। छोटा-सा, प्यारा-सा गोलमटोल बच्चा। होगा कोई चार बरस का। पहले भी वह एक-दो बार आया था, पर मीशा ने ध्यान नहीं दिया। आज सोचने लगी, यह बच्चा इतना चुप-चुप सा क्यों है! इतना सहमा हुआ क्यों लग रहा है? उसे बिल्कुल समझ में नहीं आया। वह सोचने लगी, ‘शायद इसकी मम्मी ने डांटा होगा। वरना कोई बच्चा भला इतना चुप-चुप कैसे हो सकता है?’
मीशा ने अपना होमवर्क पूरा किया। फिर झट दौड़कर रसोई में गई। बिस्कुट वाला डिब्बा खोला, उसमें से चार-पांच मीठे, कुरकुरे बिस्कुट निकाल लाई। प्लेट में बिस्कुट लेकर उस बच्चे के आगे खड़ी हो गई। मुसकराते हुए बोली, ‘खाएगा न, ले खा।’ बच्चे ने कुछ देर अविश्वास से देखा, मीशा खिलाना चाहती है या यों ही ललचा रही है? पर मीशा की आंखों में सच्ची-मुच्ची प्यार था। देखकर बच्चे ने झट बिस्कुट की प्लेट ले ली। फर्श पर रखकर मजे में बिस्कुट खाने लगा।
बिस्कुट वाकई अच्छे थे। ताजे-ताजे, कुरकुरे। बच्चे को वे इतने अच्छे लगे कि खाते-खाते वह एकाएक हंसने लगा। देखकर मीशा खुश हो गई। बोली, ‘क्या नाम है तुम्हारा?’
‘नीटू…!’ नारियल वाला गोल कुरकुरा बिस्कुट मुंह में रखते हुए, उस सांवले बच्चे ने कहा। ‘अरे वाह, नाम तो अच्छा है, बल्कि बहुत प्यारा। पर तुम बोलते क्यों नहीं हो? इतने चुप-चुप क्यों हो? मुझसे बातें करो। अच्छा, मुझसे दोस्ती करोगे? मेरा नाम मीशा है, मीशा।’ मीशा ने बड़े प्यार से कहा।
कुछ देर तो नीटू सोचता रहा, क्या बात करे, क्या नहीं? पर मीशा इतनी प्यारी बच्ची थी कि थोड़ी देर में नीटू खुद-ब-खुद बातें करने लगा। अपने घर की, दोस्तों की। खिलौनों की। मम्मी-पापा की। और उसकी गली में सुबह से शाम तक उछल-कूद करके जोकरी दिखाने वाले भूरे पिल्ले डब्बू की, जिससे उसकी पक्की दोस्ती थी। दोनों बातें करते जाते और खूब हंसते।
कुछ देर बाद नीटू कालिंदी चाची के साथ चला गया। पर मीशा अब भी उसी के बारे में सोच रही थी। मम्मी के पास जाकर बोली, ‘मम्मी-मम्मी, मैं नीटू को थोड़ा पढ़ा दिया करूं? वह भी थोड़ी ए, बी, सी, डी सीख जाएगा और मेरे साथ-साथ किताब पढ़ेगा। तब कितना अच्छा लगेगा। है न मम्मी?’
‘हां, बेटी, क्यों नहीं?’ मीशा की मम्मी खुश होकर बोलीं। फिर मन ही मन कहने लगीं, ‘अरे, मेरी नन्ही मीशा सचमुच कितनी समझदार हो गई है।’ और नन्ही मीशा तो उछल रही थी, ‘वाह जी वाह, मैं तो टीचर बनूंगी!’ और सच्ची-मुच्ची अगले दिन से ही रोज शाम को मीशा ने नीटू को पढ़ाना शुरू कर दिया। पहले उसने क, ख, ग और ए, बी, सी, डी याद कराया, फिर थोड़ी गिनती। नीटू होशियार था। मीशा जो कुछ पढ़ाती, झटपट याद कर लेता। मीशा खुश होकर बोली, ‘गुड…वेरी गुड, नाइस बॉय!’ अपनी तारीफ सुनकर नीटू हंसने लगा। फिर बोला, ‘यस मैम…मैं सब सीख गया। अब आगे और पढ़ा दीजिए।’ और मीशा मग्न होकर पढ़ाने लगी।
कुछ देर बाद बोली, ‘चलो, ठीक है, अब पोएम याद करते हैं।’ उसने बिल्कुल अपनी हिंदी वाली मैडम की तरह बिल्लो मौसी वाली कविता सुनाई। भालू जी की हड़ताल और बारिश में छाता लेकर निकले चूहे राजा की भी। नीटू को मजा आ गया। उसने झटपट-झटपट कविताएं याद कीं और सुना भी दीं।
मीशा बोली, ‘शाबाश…! तुम तो बड़े होशियार हो।’ फिर अपनी कहानियों वाली किताब खोलकर लाल परी वाली कहानी सुनाने लगी। नीटू को भी मजे आ रहे थे। कालिंदी चाची ने देखा तो मीशा की मम्मी को बताया। उन्होंने वहीं से स्टडी में बैठे पापा को इशारा किया। उन्होंने भी मीशा का यह नया रूप देखा तो रीझ गए। पास जाकर मीशा को बहुत प्यार किया, नीटू को भी। मम्मी और कालिंदी चाची भी बड़ी खुश थीं।
अब तो मम्मी जब भी खाली होतीं, मीशा दौड़कर मम्मी के गले में बांहें डाल देती और कहती, ‘देखो-देखो मम्मी, नीटू कितना शरारती है। आज क्या हुआ कि…!’
फिर नीटू की शरारत का किस्सा सुनाते-सुनाते वह इतना हंसती, इतना हंसती कि मीशा की मम्मी भी हंस पड़तीं। प्यार से भरकर अपनी लाडली बेटी का माथा चूम लेतीं। फिर हंसकर कहतीं, ‘मीशा, तू अच्छी तो पहले भी थी, पर नीटू की नन्ही टीचर बनकर तो और भी अच्छी हो गई है।’ सुनकर मीशा को भी बड़ा अच्छा लगता है। उसी वक्त नन्हे नीटू का हंसता हुआ चेहरा उसके सामने आ जाता है। मीशा सोचती है, ‘नीटू पढ़-लिख जाए तो कितना अच्छा है। पर अकेला नीटू ही क्यों? मैं तो सभी को खुशियां बांटूंगी, क्योंकि खुशियां बांटने से ही तो खुशियां मिलती हैं।’