केवल तिवारी
जाने-माने व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय का व्यंग्य नाटक ‘क्यूं चुप तेरी महफिल में है’ आज की आभासी दुनिया को आईना दिखाने वाला है। बेशक कोरोना महामारी के इस दौर में ऑनलाइन गतिविधियों की महत्ता बढ़ गयी है, लेकिन अपनों के साथ अपनेपन से रहने को कई लोग तड़प रहे हैं और कई लोग जल्द ऐसा होने की उम्मीद कर रहे हैं।
इस नाटक में लेखक ने पुलिस-प्रशासन, अपनी दुनिया में खोयी युवा पीढ़ी के क्रिया-कलाप पर व्यंग्यात्मक चोट की है। नाटक के सूत्रधार यानी नट और नटी के चुटीले संवाद से लेकर ऊंची-ऊंची इमारतों में शिफ्ट युवा पीढ़ी की गतिविधियों को बेहतरीन हास्यपुट से उभारा है। पति-पत्नी के बीच भी ऑनलाइन प्रेम-प्रसंग, हर चीज के लिए गूगल सर्च की बात, दो बुजुर्गों का संवाद, कान में ईयर प्लग ठूंसी पीढ़ी का व्यवहार जैसे तमाम ऐसे प्रसंग नाटक में हैं कि पढ़ते-पढ़ते अहसास होता है कि ‘हां यही सब तो हम सबके आसपास हो रहा है।’ फिर हंसी और गुस्सा दोनों मनोभाव पैदा होते हैं।
नाटक को पढ़ने से इसके मंचन की झलकी आंखों में तैरने लगती है। दृश्य घूमते हैं फिर अंत में ‘चुप्पी है चुप्पी है’ के शोर में सारी व्यवस्था पर करारी चोट का आभास होता है। कहीं-कहीं पर प्रूफ की गलतियां रह गयी हैं, लेकिन नाटक को पढ़ते वक्त इनसे प्रवाह अवरुद्ध नहीं होता। कहीं-कहीं संवाद भी लंबे लगते हैं, लेकिन ये लंबे संवाद संभवत: उस दृश्य विशेष की मांग होती है।
पुस्तक : क्यूं चुप तेरी महफिल में है लेखक : प्रेम जनमेजय प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स, नोएडा, पृष्ठ : 66 मूल्य : रु. 150.