पुष्परंजन
सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला और भारत बायोटेक के एमडी कृष्णा इल्ला में अब सुलह करा दी गई है। गुज़रे रविवार को एक टीवी चैनल से अदार पूनावाला बोल पड़े, ‘सिर्फ़ तीन कंपनियों-फाइज़र, माॅर्डना, और आस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन से कोरोना से सुरक्षा संभव है, बाक़ी सब पानी समझिए।’ उनके प्रतिस्पर्धी भारत बायोटेक के एमडी कृष्णा इल्ला को यह बयान नागवार गुज़रा। पेशेवर वैज्ञानिक रहे कृष्णा इल्ला ने सार्वजनिक रूप से पूछा कि जो डाटा और रिपोर्ट सरकार को आस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड ने भेजी है, वह कितनी विश्वसनीय है? कंपनियों की इस नूरा कुश्ती से अलग पीएम मोदी स्वदेशी वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को बघार रहे थे, ‘यह देसी वैक्सीन है, पूर्णतया सुरक्षित।’
सुलह तो हुई, मगर शंका सुलगा दी। प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने मुर्गायुद्ध से पूरा माहौल ही बदल दिया। प्रतिपक्षी नेता इन बयानों के हवाले से पूरी प्रक्रिया पर प्रश्न उठाने से शायद रुकें। डाटा का सवाल बना रहेगा। एक तथ्य यह भी है कि ‘कोविडशील्ड’ संपूर्ण रूप से देशी न होकर ब्रिटेन के आॅक्सफोर्ड आस्ट्राजेनेका का भारतीय संस्करण है। ‘कोविडशील्ड’ अप्रूव होना है, इस बारे में सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया के मालिक साइरस और अदार पूनावाला 28 नवंबर, 2020 को ही सुनिश्चित हो गये थे, जब प्रधानमंत्री मोदी पुणे स्थित मुख्यालय पधारे थे। इसके कुछ हफ्तों बाद, ड्रग कंट्रोलर जनरल आॅफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा नियुक्त एक्सपर्ट पैनल ने ‘कोविडशील्ड’ को हरी झंडी दी। निर्माताओं का दावा है कि ‘कोविडशील्ड’ टीके को दो से आठ डिग्री तक के तापमान में छह माह के वास्ते सुरक्षित रखा जा सकता है। आस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी व सीरम इंस्टीट्यूट के सहकार से बनने वाली कोरोनारोधी वैक्सीन ‘कोविडशील्ड’ बाज़ी मारेगी, इसे लेकर प्रतिस्पर्धी कंपनियां हैरान थीं। सीरम इंस्टीट्यूट 140 देशों को एंटी रैबीज और एंटी वायरस वैक्सीन बेचती है।
अन्य टीकों की सप्लाई बाधित
दुनियाभर में बैक्टीरिया, रैबीज व वायरस रोधी टीके समय पर पहुंच जाएं, इसे माॅनिटर करने के वास्ते कई संस्थाएं हैं। ग्लोबल अलायंस फाॅर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन (जीएवीआई), पैन अमेरिकन हेल्थ आर्गेनाइजेशन (पीएएचओ), डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ को यह सुनिश्चित करना होता है कि वैक्सीन ज़रूरतमंद इलाकाें में पहुंच रही है। पिछले नौ महीने से कोविड-19 की हाहाकारी स्थिति ने बाकी वैक्सीन सप्लाई को बाधित किया है, यह बात भी सामने निकल कर आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2018 में जानकारी दी थी कि विश्वभर में बच्चों को दिये जाने वाले डिप्थेरिया, टेटनस और कुकुरखांसी रोधक टीका ‘डीपीटी-3’ की मात्र 86 फीसद सप्लाई हो पायी थी। मई 2020 में यूनिसेफ ने और भी भयावह रिपोर्ट दी, जिसके अनुसार, ‘99 देशों में मीज़ल, रूबेला, पोलियो, डीपीटी, मैनिन्जाइटिस के एंटीजन भेजे नहीं जा रहे।’ उसकी मुख्य वजह वे कंपनियां रही हैं, जो कोविड-19 के टीके तैयार करने की प्रतिस्पर्धा में लगी पड़ी थीं। टीका निर्माण के कारोबार में लगी कंपनियों को मालूम था कि दुनिया के 195 देश कोरोना वैक्सीन पाने के वास्ते हाय-तौबा मचाएंगे। डिमांड-सप्लाई के इस गणित से इतर नोट छापना भी दूसरा बड़ा कारण रहा है।
डाटा शेयर करने के सवाल पर चुप्पी
जेनेवा स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईएफपीएमए) एक ऐसी संस्था है, जहां दुनियाभर की दवा व वैक्सीन निर्माण कंपनियां रजिस्ट्रेशन कराती हैं। इसके डाटा बेस में कोई दस लाख शोधकर्ता निबंधित हैं, जिनका दिन-रात वायरस रोधी टीके तैयार करने में निकलता है। ‘आईएफपीएमए’ के पोर्टल पर 22 दिसंबर, 2020 को थाॅमस बी कुएनी का एक लेख आया, जिसे पढ़कर इंसान सोचने को बाध्य होता है कि क्या सचमुच कोविड रोधी वैक्सीन पाने में लोगों की दिलचस्पी घटती जा रही है? उसकी मुख्य वजह डाटा शेयर का पारदर्शी नहीं होना है। कुछ दिन पहले ही भारत में इमरजेंसी रूप में लांच होने वाले कोविडशील्ड वैक्सीन के निर्माता अदार पूनावाला एक टीवी चैनल पर स्वीकार कर रहे थे कि इस वैक्सीन को लगाने के बाद इसकी गारंटी नहीं है कि कोरोना होगा ही नहीं। ‘कोविडशील्ड’ का परीक्षण कितने भारतीय मूल के लोगों पर हुआ है? इस सवाल पर इसे रेगुलराइज करने वाले पैनल के अधिकारी चुप हैं। ठीक है, भारत सरकार के पैनल ने ‘कोविडशील्ड’ के आपात इस्तेमाल की अनुमति दे दी है, मगर इसे इस देश की आम जनता को क्या यह बताना नहीं चाहिए कि यह वैक्सीन सेकेंड डोज़ के बाद मात्र 70.4 प्रतिशत प्रभावकारी दिखी है?
4 दिसंबर, 2021 को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया डाॅ. वीजी सोमानी जोश में आकर यहां तक बोल गये कि भारत बायोटेक का वैक्सीन 110 परसेंट सुरक्षित है। मगर, डाटा शेयर करने के सवाल पर एकदम से चुप हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डाॅ. रणदीप गुलेरिया ‘कोविडशील्ड’ के डाटा बेस के इंतज़ार में हैं। डाॅ. गुलेरिया एक चैनल से बातचीत में जानकारी साझा कर रहे थे कि ‘कोविडशील्ड’ का परीक्षण यूके, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीक़ी देशों और अमेरिका में हुआ है। डाॅ. गुलेरिया के अनुसार, ‘भारत बायोटेेक की ‘कोवैक्सीन’ केवल बैकअप के वास्ते है।’ इसके मायने कई लोगों ने कई तरह से निकाले। इसे संपूर्ण टीका मानें या न मानें?
भारत की आबादी और वैक्सीन
भारत सरकार ने वैक्सीन सप्लाई व टीके लगाने वालों के डाटा के वास्ते कई ई-कॉमर्स प्लेटफार्म विकसित किये हैं। इसमें व्हाट्सअप चैटबोट भी है, जिससे जानकारी लेते रहिए। जुलाई 2021 तक 30 करोड़ देशवासियों को वैक्सीन लगा देना है। पर सवाल वैक्सीन की उपलब्धता का भी है। सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा निर्मित ‘कोविडशील्ड’ के पांच करोड़ डोज़ इस समय स्टाॅक में है। इसे यदि डबल डोज में विभाजित करें, तो यह टीका मात्र अढ़ाई करोड़ लोगों को लग सकेगा। यों भी सीरम इंस्टीट्यूट अधिकतम पांच करोड़ टीके का निर्माण एक महीने में कर पाने की स्थिति में है। डाॅक्टरों की मानें, तो भारत की साठ प्रतिशत आबादी, यानी 80 करोड़ लोगों को 1 अरब 60 करोड़ डोज़ की तत्काल आवश्यकता है। ऐसे में यह लक्ष्य साल के अंत तक पूरा हो पायेगा क्या? तब तक वायरस का पता नहीं कौन सा वेरिएंट भारत में कहर बरपा रहा हो। एक अरब 39 करोड़ की आबादी वाला भारत, कोरोना वैक्सीन का सबसे बड़ा बाज़ार है। इस विराट बाज़ार को दुनिया की बाकी प्रतिस्पर्धी कंपनियां अपने हाथों से क्यों जानें दें? अमेरिकी कंपनी नोवावेक्स, रूसी टीका स्पूतनिक (जो हैदराबाद स्थित डाॅ. रेड्डी की कंपनी में निर्माणाधीन है) 40 लाख डोज तैयार करने का दावा करने वाली जायडस-केडिला की ‘ज़ायकोव-डी’, फाइज़र की ‘माॅडर्ना’, डीसीजीआई द्वारा नियुक्त एक्सपर्ट पैनल के इंतज़ार में हैं कि उन्हें भी रेगुलराइज़ किया जाए। ऐसा नहीं होता है, तो इन कंपनियों के करोड़ों डाॅलर स्वाहा हो जाएंगे।
मार्केट और कंपनियों में प्रतिस्पर्धा
इस समय वैक्सीन निर्माता कंपनियों में क्रेडिट लेने की होड़ भी मची है। 27 देशों के समूह यूरोपीय संघ ने क्लीनिकल ट्रायल में 95 फीसद प्रभावकारी माडर्ना वैक्सीन को मंज़ूरी दी है। 95 प्रतिशत सुरक्षित अमेरिकी कंपनी फाइज़र और जर्मनी के माइंज़ में निर्मित बायोएन-टेक को ईयू ने नवंबर, 2020 में ही सप्लाई की मंजूरी दे दी थी। मतलब, विकसित देश अपने यहां सर्वाधिक 95 फीसद सुरक्षित वैक्सीन को ही अनुमति दे रहे हैं। वो भी तीसरे ट्रायल के डाटा आने के बाद। 2019 में तब कोविड की काली छाया दुनिया पर नहीं पड़ी थी, जब फॉरचून बिजनेस रिसर्च ने दावा किया था कि 2027 तक वैक्सीन का मार्केट साइज़ 104.87 अरब डाॅलर का हो जाएगा। मगर, कोरोना के कोहराम के बाद सारे पूर्वानुमान पलट गये। यहां तक कि डब्ल्यूएचओ के अनुमान ग़लत साबित होने लगे। यह ध्यान में रख सकते हैं कि 2019 में केवल उत्तर अमेरिका में वैक्सीन का मार्केट साइज़ 24 अरब 88 करोड़ डाॅलर का था। अब मार्केट रिसर्च से जुड़ी संस्थाएं नये सिरे से इसका आकार नापने में लगी हैं।
एडवांस टीके को लेकर जासूसी
ट्यूबिंगन स्थित जर्मन लैब ‘दाइविनी होफ बायो टेक होल्डिंग’ की एक शाखा अमेरिका के बाॅस्टन में भी है। 11 मार्च, 2020 को इस कंपनी के सीईओ दानियल मिनिषेला को उनकी संदिग्ध हरकतों की वजह से हटाया गया था। ख़बर यह थी कि दानियल मिनिषेला ने ट्रंप से मुलाक़ात की थी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने सारी रिसर्च को बाॅस्टन लाने का दबाव बनाया। इस प्रकरण में ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ बुरी तरह से एक्सपोज़ हुआ था।
ऐसे घतकर्मों में शासन प्रमुख तक शामिल हो जाते हैं, यह इसका जीता-जागता उदाहरण है। ट्रंप ऐसा इसलिए कर रहे थे, क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ दल को फंड की दरकार होती है। इसका क्रेडिट भी उन्हें लेना था कि देखिये, मेरे रहते आम अमेरिकी को कोविडरोधी वैक्सीन उपलब्ध हो पाई। मगर अफसोस, ट्रंप की सारी तदबीरें उल्टी पड़ गईं!
वैक्सीन कारोबार के ग्लोबल लीडर
सितंबर 2012 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक सर्वे कराया था, जिसके अनुसार वैक्सीन के ग्लोबल मार्केट पर 23 फीसद कब्ज़ा ब्रिटेन की कंपनी ग्लैक्सोस्मिथ क्लाइन का है, फ्रांस की सैनोफी का 17 प्रतिशत, अमेरिका की फाइज़र का 13 फीसद, मार्क एंड कंपनी का 12 प्रतिशत, बाज़ेल (स्विट्ज़रलैंड) की नोवार्तिस का 10 फीसद और सेनोफी पास्टर एंड एमएसडी का चार प्रतिशत कब्जा ग्लोबल वैक्सीन मार्केट पर है। बाक़ी 21 फीसद पर इनोवियो फार्मास्यूटिकल्स, इमरजेंट बायोसोल्यूशन, आॅस्ट्रेलिया की सीएसएल लिमिटेड, डेनमार्क की बावेरियन नाॅर्डिक, जापान की मित्सुबिशी तानाबे फार्मा कारपोरेशन, जर्मनी की बायोएन-टेक जैसी दिग्गज कंपनियों का कब्ज़ा है। इसमें भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया को भी शामिल कर लीजिए। पिछले एक दशक में वैक्सीन निर्माण के कारोबार में दक्षिण कोरिया की एलजी लाइफसाइंस, कोरिया एडवांस इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस, बर्ना, जेन वन लाइफ साइंस, एसके बायोसाइंस, इंडोनेशिया की बायोफार्मा, शंघाई की एसआईवीपी, चीन सरकार की साइनोफार्म, शेन्चेन एवीपी, शेन्चेन कांग्थाई, मैक्सिको की बीरमैक्स, क्यूबा की सीआईजीबी और इंस्तीच्यूतो फिनले, ब्राज़ील की बायोमैंगुइनहोस और बुटांटन इंस्टीट्यूट जैसी कंपनियों ने तेज़ी से दस्तक दी है।
हमारी वैक्सीन क्या सौ फीसद स्वदेशी हैं?
इसे ध्यान में रखें कि मई 2020 में फिलाडेल्फिया स्थित जैफर्सन वैक्सीन इंस्टीट्यूट से भारत बायोटेक ने ‘कोवैक्सीन’ विकसित करने के वास्ते समझौता किया था। जैफर्सन के प्रख्यात विषाणु वैज्ञानिक प्रोफेसर मैथिआस श्नेल व आईसीएमआर के शोधकर्ता भारत बायोटेेक के इस प्रोजेक्ट में सूचनाएं साझा कर रहे थे। एक और बात है भारत बायोटेक ने जिस तरह के परीक्षण किये वह चीनी वैक्सीन ‘साइनोफार्म’ के पैटर्न पर रहा है। भारत बायोटेक ने बच्चों के वास्ते वैक्सीन पर काम करना शुरू किया है, जो उल्लेखनीय है। उसकी वजह ब्रिटेन से निकले कोरोना के नये वैरिएंट की चुनौती है, जिसके तेज़ संक्रमण के शिकार बच्चे हो सकते हैं। तीसरी कंपनी है अहमदाबाद स्थित जायडस कैडिला हेल्थकेयर जिसकी वैक्सीन ‘जायकोव-डी’ को फेज़ थ्री के वास्ते परीक्षण की अनुमति मिली है। चौथी वैक्सीन ‘स्पूतनिक-वी‘ है, जिसे रूसी कंपनी गेमालया नेशनल सेंटर व हैदराबाद स्थित डाॅ. रेड्डी लैब में विकसित किया जा रहा है। ब्रिटेन और बहरीन में आदेश मिलने के बाद, फाइज़र इंडिया ने 4 दिसंबर, 2020 को भारतीय दवा नियामक ‘डीसीजीआई’ से आपात उपयोग की अनुमति मांगी थी। मगर, मुश्किलें फाइज़र वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री तापमान में रखने की आ रही हैं।
सही डाटा का टोटा
तीसरे ट्रायल में 95 फीसद सुरक्षित डाटा मिलने के बाद ही विकसित देश वैक्सीन को हरी झंडी दे रहे हैं। इसके उलट दुनिया का दो तिहाई हिस्सा डाटा के नाम पर धूल झोंकने वाली कंपनियों की गिरफ्त में है। 9 दिसंबर, 2020 को संयुक्त अरब अमीरात शासन ने चीन की सरकारी लैब में बनी वैक्सीन ‘साइनोफार्म’ को मंज़ूरी दी। उसके अगले दिन बहरीन ने भी ‘साइनोफार्म’ को हरी झंडी दी। मध्य-पूर्व देशों में चीनी वैक्सीन की यह पहली एंट्री थी। ‘साइनोफार्म’ के अधिकारियों ने दावा कर दिया कि यह 86 फीसद सुरक्षित है। मगर जब इससे संबंधित डाटा करने की बात यूएई और बहरीन के पत्रकारों ने की तो अधिकारी इस सवाल को गोल कर गये। चीन की सरकारी मीडिया ने जानकारी दी कि दुनिया के सौ देशों में ‘साइनोफार्म’ की मंजूरी हो चुकी है, और शी जिनपिंग सरकार सप्लाई वाले फेज़ में है। चीन ने जानबूझकर मिडल ईस्ट और अफ्रीक़ी देशों को वैक्सीन सप्लाई के वास्ते चुना जहां शासन चलाने वालों को ‘मैनेज’ करना आसान है।
यह दिलचस्प है कि जनवरी, 2021 में ‘साइनोफार्म’ तीसरे दौर का ट्रायल करेगी, इसके उलट नवंबर के पहले हफ्ते में उत्तरी अफ्रीकी देश मोरक्को ने इसके आपात इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी थी। मिस्र पहला अफ्रीकी देश है, जिसने ‘साइनोफार्म’ के वैक्सीन सीधा अपने नागरिकों को लगवाने शुरू कर दिये। 10 दिसंबर, 2020 को कैरो में स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता खा़लिद मेगाहेद ने बयान दिया कि ‘साइनोफार्म’ सौ प्रतिशत सुरक्षित है। कैसे न मानें कि आंख मूंदकर भरोसा करने के पीछे पैसे का कोई बड़ा खेल नहीं हुआ है?