मीरा गौतम
‘मेरे राम का रंग मजीठ है’ सदानंद शाही का अनूदित काव्य-संग्रह है। ब्रज और अवधी में रचित संत रैदास के पदों को हिन्दी में छंद मुक्त कविता में रूपांतरित करके उन्होंने एक विलक्षण दृष्टांत प्रस्तुत किया है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और प्रेमचंद जैसे बड़े अनुवादकों की सीख इसमें शामिल है कि अनूदित कृति में मूल पाठ के कुछ अंश अवश्य रखे जाने चाहिये। पाठकों की सुविधा के लिए अनुवाद से पूर्व रैदास के मूल पद, उनके शब्दार्थ और उनकी व्याख्या को नमूनों के तौर पर रखने के बाद सदानंद ने अगले पृष्ठ पर उसका अनुवाद क्रमशः दिया है।
उन्होंने ‘श्री गुरुग्रंथ साहब’ में संकलित 41 प्रामाणिक पदों को काव्यांतरण का आधार बनाया है। यहां रागों का उल्लेख है जबकि अनुवादक ने काव्यांतरण में शीर्षक दिये हैं। 41 पदों के अनुवाद के बाद अनुवादक ने पुस्तक के अंत में संत रैदास पर अपने मन्तव्य भी विशेष रूप से दिये हैं, जिससे रैदास वाणी के मर्म तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
अनुवाद कर्म में, मूल भाषा और लक्ष्य भाषा में अर्थ-संगति है। उदाहरण के लिए पहले पद में 8 पंक्तियों का अनुवाद 19 पंक्तियों में किया गया है।इसका कारण है कि काव्य का अनुवाद बहुत जटिल होता है। इसमें मूल अर्थ की रक्षा के लिए अनेक शब्दों को परख और छानफटक कर ही उनका चयन और प्रयोग करना होता है।
सदानंद शाही के अनुवाद-कर्म की बात करें तो रैदास का महत्वपूर्ण पद ‘राग गउडी’ में निबद्ध ‘बेगमपुरा शहर को नाउ’ का शीर्षक सदानंद शाही ने ‘मेरा शहर है बेगमपुर’ रखा है, जिसमें रैदास कहते हैं कि मेरे शहर बेगमपुर में दुःख, संशय को जगह नहीं है। इस गमरहित शहर में न माल है, न लगान की चिंता। यहां ख़ैरियत ही खैरियत है। सदानंद शाही ने इस पद के मूल अर्थ की रक्षा के लिए सधे हुए उपयुक्त शब्दों का प्रयोग किया है, ‘जो इस शहर में रहने वाला है वही मेरा मित्र है।’ यह इस पद का मर्म है जो सदानंद शाही के अनुवाद-कर्म में सुरक्षित है।
शास्त्र और दर्शन की जड़ता को तोड़कर रैदास की वाणी ज़मीनी सच्चाइयों से ऊपर उठती हुई अपनी पराकाष्ठा तक पहुंची है। यह अनुवाद रैदास की मूलवाणी का छायानुवाद ही कहा जा सकता है। काव्यात्मक अलंकरण के सहज प्रयोगों को सदानंद शाही बड़ी कुशाग्रता से सुरक्षित बचा ले गये हैं। यह सफल अनुवाद है और काव्यानुवाद के मानकों पर भी खरा उतर रहा है। सदानंद शाही ने अनुवाद-कर्म के नये गवाक्ष खोले हैं। मूल पदों में रैदास और रविदास दोनो नामों का प्रयोग हुआ है। सदानंद शाही रैदास नाम के पक्ष में हैं।
यह अनूदित कृति यह भी तय कर रही है कि अनूदित कृति का मूल्यांकन मूल कृति की तरह होना चाहिए।
पुस्तक : मेरे राम का रंग मजीठ है (रैदास बानी का काव्यांतरण) लेखक : सदानंद शाही प्रकाशक : लोकायत प्रकाशन, वाराणसी पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 400.