कविताओं में आंचलिकता की महक : The Dainik Tribune

पुस्तक समीक्षा

कविताओं में आंचलिकता की महक

कविताओं में आंचलिकता की महक

फूलचंद मानव

हिंदी कविता में अंचल विशेष पर सृजनात्मक कार्य जहां कहीं कविता में हुआ है वहां भाषा की चुनौती रचनाकार को पेश आती है। अंचल विशेष की कविता कहते हुए मुहावरेदारी में भाषा, शैली और अंचल विशेष की संस्कृति को भी सामने रखना होता है। अरुण चंद्र राय मुख्य धारा के रचनाकार प्रतीत होते हैं। इनकी कविताओं में मौलिकता, रचनात्मकता सृजन के स्तर को छू रही है। कवि अपने परिवेश, समाज और संस्कृति से अनुभव पाकर अभिव्यक्ति दे रहा है।

छोटी-बड़ी इन कविताओं में झारखंड एक्सप्रेस के माध्यम से अरुण चंद्र राय क्षेत्र विशेष की गरीबी, वहां का वातावरण, संघर्ष और उनकी विडंबना, इन सब पर आंख लगाए हुए है। कविता रांची वार सेमेट्री, ईस्ट बसुरिया, कतरासगढ़ का किला, कनेरी हिल्•ा, कहां है चतरा, सौ बीघा और रंगभेद सरीखी कविताओं के माध्यम से जिस कथ्य को सामने लाना चाहता है, वह आज कविता के लिए जरूरी है, लेकिन कवि ने इन सभी कविताओं से पहले टिप्पणियां लिखकर संकेत या खुलासा करने की कोशिश की है। जिसकी गुंजाइश काव्यकला में कम ही स्वीकृत हो पाती है, क्योंकि कविता स्वत: एक वक्तव्य है।

नमक के खेत कविता मुझे इसलिए प्रिय है कि यहां मनुष्य के जुझारू स्वभाव की गाथा अंकित है-वे उपजाते हैं नमक/ अपने रिसते हाथों पैरों से/ बढ़ाते हैं हमारा स्वाद/ अपनी गलती हुई चमड़ी और हड्डियों से/ वे नमक उपजाते हैं।

संवेदना, सहृदयता और मार्मिकता का यह स्तर रचनाकार के काव्य कौशल को उभारता, दिखाता और स्वीकृत करवा जाता है। यूं ही कविताएं अव्यक्त, आत्महत्या, मुआवजा, उधार के साथ चासनाला और रंगभेद कवि के अनुभवों की प्रखर मिसाल है। कवि अंचल विशेष को रेखांकित करता हुआ कविता के माध्यम से जो कह रहा है पाठक उसे अपनाने में सफल हो जाता है। यही रचनाकार की कामयाबी है। हां, काव्य संग्रह के आरंभ में तीन-चार चर्चित कवि एवं उपन्यासकार 12, 14 पन्नों में जो कुछ कह रहे हैं वह अरुण चंद्र राय के लिए भले प्रमाणपत्र सिद्ध हो, हिंदी का प्रबुद्ध पाठक अपनी गति और मति के अनुसार ही कविताओं का रसास्वादन कर पाएगा।

पुस्तक : झारखंड एक्सप्रेस लेखक : अरुण चंद्र राय प्रकाशक : ज्योतिपर्व प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 129.

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