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रचना-कर्म की इंद्रधनुषीय आभा

रतन चंद ‘रत्नेश’ जैसा कि नाम से जाहिर है, आशमा कौल द्वारा संकलित ‘इन्द्रधनुष कविता का’ में कविता, गीत और ग़ज़ल के सभी रंग शामिल हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह या दुराग्रह के खुले मन से सभी तरह की कविताओं...
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रतन चंद ‘रत्नेश’

जैसा कि नाम से जाहिर है, आशमा कौल द्वारा संकलित ‘इन्द्रधनुष कविता का’ में कविता, गीत और ग़ज़ल के सभी रंग शामिल हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह या दुराग्रह के खुले मन से सभी तरह की कविताओं को स्वीकार किया गया है। फिर भी कुछ रचनाएं बरबस ध्यान खींचती हैं जैसे कि डॉ. मुदस्सिर अहमद भट्ट की कविता मासूम बर्फ जिसमें कश्मीर का दर्द मुखरित हुआ है :- ‘बिखर रहे हैं चिनार के अनगिनत पत्ते, खिल रहे हैं राजनीति के फूल, पिघल रही है मासूम बर्फ।’

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कश्मीर से जुड़े कवियों की रचनाएं संग्रह में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराती हैं। चर्चित कवि अग्निशेखर ‘संग्रहालय में कटे हुए पांव’ में कहते हैं :- ‘जाने किसने, घबराकर किसी बड़े प्रश्न का, गला घोंटा है, और या इतिहास की चिंता से बाहर, रह गए पांव, बोलते नहीं झूठ, गवाहों की तरह।’

इसी तरह कुछ कविताओं की चंद पंक्तियां बेहतरीन होने का मजबूत अहसास दिलाती हैं। भूलने से हल होते, वक्त के जरूरी सवाल (चंद्रकांता विशिन), मेरे कंधों पर, नये कंधों का हल्का-सा दबाव है (डॉ. इंदु गुप्ता), कल घर से निकला, शब्द घर में ही छूट गए (तेजेंद्र शर्मा), हम नष्ट हुए छत्ते की, मधुमक्खियां हैं (महाराज कृष्ण संतोषी), हवा लगातार, सेंध लगाती रहती है, सरहदों के कानून कायदे में (डॉ. सुभाष रस्तोगी), जब हमको प्रेम को चुनना था तब हमने डर को चुना (सरस्वती रमेश), लोग इस्तेमाल करते हैं, दूसरों के कंधों को, सीढ़ियों की तरह, और तमन्ना रखते हैं आकाश छू लेने की (कमलेश भारतीय)। इसी तरह लीलाधर मंडलोई, डॉ. प्रद्युम्न भल्ला, डॉ. रंजना जायसवाल आदि की कविताएं प्रभावित करती हैं। संग्रह में कुल 188 रचनाकारों की रचनाएं हैं।

पुस्तक : इन्द्रधनुष कविता का संपादक : आशमा कौल प्रकाशक : अयन प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 344 मूल्य : रु. 750.

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