मनमोहन गुप्ता मोनी
‘उर्मिला कुछ कहती है’ अर्चना कोचर की लघु कविताओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें रामायण के एक पात्र लक्ष्मण की अर्द्धांगिनी उर्मिला के बारे में गंभीरता से लिखा गया है। पुस्तक 12 खंडों में विभक्त है। पहले भाग ‘उर्मिला कौन है’ में लेखिका बताती है कि वह मिथिला की राजकुमारी है तथा रामायण का एक ऐसा नाम है जो गुमनाम है। यह एक ऐसा पात्र है जो उपेक्षित ही रहा है। भाई राम के साथ इनके पति लक्ष्मण वनवास को चले गए तो उर्मिला ने स्वयं भी वनवासी पति की तरह जीवन जिया।
‘मेरा त्याग कहां कम है’ खंड में लेखिका का मानना है कि किसी के उल्लेखनीय त्याग को अनदेखा करना भी एक सवाल छोड़ जाता है। कुछ इसी तर्ज पर वह कहती हैं :-
‘हमारी नन्ही चिड़िया को चिड़े से एक घड़ी/ बिछुड़ना स्वीकार नहीं।/ मेरे भी साजन संग नहीं/ जहान में मेरे रंग नहीं।/ पीड़ा के सागर में डूबी/ मैं भी हूं इंसान/ धर्म-फर्ज पर कुर्बान/ फिर मेरे तप- त्याग से/ यह दुनिया क्यों है अंजान?’
उर्मिला की कुछ इसी तरह की पीड़ा को बयान करती हुई अर्चना कहती हैं :-‘पिया यह मिलन की अधूरी दास्तानें/ रात भर सोने नहीं देतीं।/ …’
चरित्र चित्रण में लेखिका उर्मिला की दशा का वर्णन इस प्रकार भी करती है : -‘उर्मिला तुम किस दुविधा में पड़ी हो/ इस सारे वृत्तांत में तुम कहां खड़ी हो।/ तुम्हारे तप-त्याग, अर्पण-समर्पण सब बेमानी हैं।/ पर्दे के पीछे की कहानी हैं।/ कब उठेगा पर्दा/ प्रश्नवाचक मुद्रा में खड़ा यह प्रश्न/ जवाब के इंतजार में केवल प्रश्न ही/ बनकर रह गया है।’
अर्चना कोचर की कविताओं में लय है। हर रचना 8-10 पंक्ति से अधिक की नहीं है लेकिन हर रचना में एक बात कही गई है। कहीं पीड़ा है तो कहीं उलाहना। कुल मिलाकर संग्रह रोचक बन पड़ा है।
पुस्तक : उर्मिला कुछ कहती है… लेखिका : अर्चना कोचर प्रकाशक : लिटरेचर लैंड, नयी दिल्ली पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 395.