सरस्वती रमेश
गीतों के माध्यम से मन की अकुलाहट और विसंगतियों को व्यक्त किया जाए तो उनकी मारक क्षमता बढ़ जाती है। गीतों के अभिनव रूपकों ने जनमानस को निरंतर आकर्षित किया है। ऐसे ही गीतों की परंपरा को आगे बढ़ाता समकालीन गीत संग्रह है ‘टूटेंगे दर्प शिलाओं के।’
डॉ. अभय के गीतों में मानव जीवन के प्रति आस्था है। मगर वर्तमान समय में दुनिया में आ रही विडंबनाओं व जटिलताओं को कवि मन गहरे तक अनुभूत करता है। वे संसार की मासूमियत को बचाना भी चाहते हैं और निष्ठुरता पर प्रहार भी करना चाहते हैं।
बिगड़े हुए फरिश्तों ने/ घेर लिए सचिवालय/ मंदिर-मस्जिद से ऊंचे/ खड़े मिले मदिरालय।
गीत कवि ने अपने गीतों में बिल्कुल नए और प्रभावी बिंबों का प्रयोग किया है। ये बिम्ब न सिर्फ गीतों की खूबसूरती बढ़ाते हैं बल्कि अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावी भी बनाते हैं।
नदी पाट कर/ नगर बसाएं/ पिचके पेट तालाबों के/ ऊंचे बंगले/ ठसक दिखाते/ गांव बसे अलगावों के।
गीतों में प्रकृति के मनोहर रूपों का वर्णन मनभावन तरीके से किया गया है।
केसर वाली महक बहेगी/ चंदन धोई नदियों में।
डॉ. अभय एक सशक्त गीत कवि हैं। उनके अनेक संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वे अपने प्रतीकों के सृजन की मौलिकता के प्रति सचेत दिखते हैं। गीतों की भाषा में ताजगी है और भावों में उत्कृष्टता। शब्दों का अनूठा प्रयोग है। कुल मिलाकर यह एक बेहतरीन संग्रह है।
पुस्तक : टूटेंगे दर्प शिलाओं के रचनाकार : डॉ. मनोहर अभय प्रकाशक : राजश्री प्रतिभा प्रतिष्ठान, नवी मुंबई पृष्ठ : 151 मूल्य : रु. 200.