गोविंद शर्मा
इस संग्रह में बीस कहानियां हैं। जो वास्तव में बालपन की कहानियां हैं, एक भी कल्पना जन्य नहीं है। सभी कहानियों का जन्म लेखिका सुधा भार्गव के संस्मरणों से हुआ है। संस्मरणों पर आधारित कहानी कहें या संस्मरणों से उपजी कहानी सुधा का यह नया प्रयोग है।
बचपन की रिमझिम यादों में केवल बादल से बरसता पानी ही नहीं होता, भाई-बहन भी होते हैं। भाइयों-बहनों के बीच होता है स्नेह, झगड़ा, ईर्ष्या, रीस- मुकाबला, एक-दूसरे की झूठी सच्ची शिकायतें, एक-दूसरे को मम्मी-पापा से प्यार पाते देख गुस्सा होना, एक-दूसरे को पिटवा कर खुश होना भी होता है। यह सब देखा-सहा-किया लेखिका के बचपन ने। सीधे-सीधे संस्मरण के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता तो शायद बाल पाठक को पसंद नहीं आता। कहानी के रूप में पढ़कर बाल पाठक यही कहेगा कि हम भी ऐसे ही हैं या बड़ा पाठक कहेगा- वाह, इस कहानी में तो मेरा बचपन है। ‘तमाशा ही तमाशा’ पढ़कर बचपन के वे मदारी जो बंदर भालू नचाते थे, सपेरे जो अपनी बीन की आवाज पर सांप को नचाते थे, सब याद आने लगते हैं। ‘होली की मस्ती’ भी याद आती है। बचपन में होली खेलते थे,तब कभी यह सोचा भी नहीं, जाना भी नहीं कि अपनी पिचकारी से भीगने वाला हिंदू है या मुसलमान।
इस संग्रह की कहानियां दशकों पूर्व का समय, पात्र, घटनाएं, दादी-बुआ-काकी-मामी सबके चेहरे और काम दिखा रही हैं। लेखिका सुधा भार्गव बधाई की पात्र हैं ही, चित्रकार गणेश का सजीव चित्रण और प्रकाशक का उत्कृष्ट उत्पादन- सभी मनमोहक है।
पुस्तक : यादों की रिमझिम बरसात लेखिका : सुधा भार्गव प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 250.