Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

अच्छे दिनों का बीजारोपण

कविताएं

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

मैं अच्छे दिन के इंतजार में,

पहले अक्सर खाली बैठा रहता था,

Advertisement

अनुकूल समय में काम बहुत कर लेता था,

Advertisement

प्रतिकूल समय में लेकिन सहमा रहता था।

पर जब से जाना यह रहस्य,

पेड़ों पर फल ऋतु आने पर ही लगते हैं,

पर उसकी खातिर पेड़ लगाने पड़ते हैं,

तब से प्रतिकूल समय में भी,

मैं नहीं बैठता हूं खाली,

मन में रखता हूं यह अदम्य विश्वास,

बुरे दिन भले तुरंत न कट पायें,

पर आगे चल कर अच्छे दिन,

इसके बल पर ही आयेंगे,

जो आज बीज बोयेंगे हम,

फल उसका ही कल पायेंगे।

सादगी का सौंदर्य

तमस भगाने की खातिर,

रातों को मैंने दिन की तरह बना डाला,

पर बिगड़ी सर्केडियन क्लॉक,

दिनचर्या सबकी अस्त-व्यस्त हो गई,

समझ में तब आया,

रातों का गहन अंधेरा भी,

जीवन के लिये जरूरी है,

विश्राम इसी में जीव-जंतु सब पाते हैं।

इस दीप पर्व पर इसीलिए,

मिट्टी के दीप जलाता हूं,

जो जुगनू जैसी जगमग से,

तन-मन आलोकित करते हैं,

सुंदर चेहरे पर जैसे,

काला तिल भी अच्छा लगता है,

वैसे ही गहरी रातों में

नन्हे दीपक का जलना सुंदर लगता है।

विष भी अमृत

जब छोटे-छोटे पौधे रोपे जाते हैं,

तो नयी जगह पर खूब लहलहाते हैं वे,

फिर पेड़ उखाड़े जाते हैं,

तो नये सिरे से जड़ वे अपनी,

नहीं जमा क्यों पाते हैं?

कहते हैं ऐसा वैज्ञानिक,

पौधों के भीतर नयी कोशिका बनती हैं,

वय ढलती है पर तो वे मरने लगती हैं,

तो सचमुच मरने के पहले,

क्या धीरे-धीरे मरने हम लग जाते हैं?

हो भले नियम जड़ जीवों की खातिर यह,

पर अपवाद अगर चाहें तो हम बन सकते हैं,

जिस विष से सारे जीव-जंतु मर जाते हैं,

पीकर उसको शिव नीलकण्ठ कहलाते हैं,

अनुकरण नहीं फिर उनका हम क्यों करते हैं?

सुख-दु:ख के बीच

भगवान जिन्हें हम कहते हैं,

क्या सुख वे भोगा करते हैं?

वनवास बरस चौदह भोगा,

जब राज मिला तब निर्वासित सीता को,

सुख कितना भला मिला होगा,

भीतर-बाहर दु:ख जीवनभर जो सहता है,

क्या राम उसी को कहते हैं?

जो राजमहल से दूर,

पर्वतों पर वनवासी लोगों जैसे रहते हैं,

दुनिया को लेकिन जीवन देने की खातिर,

जो जहर पी लिया करते हैं,

उन शिवशंकर को ही हम पूजा करते हैं!

सोने की लंका में जो रावण रहता है,

धन लूट-पाट कर जो कुबेर का,

सब सुख भोगा करता है,

सीता को हर लेता है जो,

हम उसे जलाया करते हैं,

फिर सुख के पीछे ही क्यों भागा करते हैं?

Advertisement
×