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स्लीपिंग पार्टनर

लघुकथा
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करतार सिंह को अपना खाली ट्रक लेकर लौटना पड़ रहा था। वह सेठ सोहनदास की राबिष लादकर यहां आया था। सेठ सोहनदास के नये मकान का निर्माण हो रहा था। अच्छी राबिश वहां मिल नहीं रही थी। पहले तो वह इस काम के लिए तैयार ही न हो रहा था लेकिन जब सेठ सोहनदास के आदमी ने उससे यह कहा था वहां से भी सेठ जी का दूसरा सामान लादकर यहां लाना है और उसे खाली ट्रक लेकर लौटना नहीं पड़ेगा। तो वह फौरन तैयार हो गया। अब वह वापसी के लिए तैयार हुआ ही था कि सेठ सोहनदास के आदमी ने उसे बताया कि सेठ जी का इरादा अचानक बदल गया है। वह अब अपना सामान बाद में भेजेंगे। करतार सिंह को बहुत गुस्सा आया। पहले तो ये कि यह धोखा था। दूसरी बात ये कि उसकी जेब बिलकुल खाली थी। आते समय राबिश लाने के लिए डेढ़ हजार जो उसे वहीं मिल गये थे, वो रुपए उसने अपने एक दोस्त के पास यह सोचकर रख दिये थे कि वहां पहुंचकर दूसरा सामान लादने के लिए और रुपए मिल ही जायेंगे।

गुस्से में झल्लाया हुआ करतार सिंह ट्रक की तरफ बढ़ा ही था कि सेठ सोहनदास का आदमी फिर आ गया। उसने पांच सौ रुपए बतौर हर्जाना करतार सिंह की हथेली पर रखा तो उसका गुस्सा पल भर में गायब हो गया।

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करतार सिंह स्टेयरिंग संभालते हुए कहीं खोकर रह गया था। सोहनी की मधुर सुरीली आवाज उसके कानों में गूंंज रही थी। हफ्ते-हफ्ते भर ट्रक दौड़ाते फिरते हो कभी मेरा ध्यान भी आता है।

सोहनी करतार सिंह की पत्नी थी। अभी एक साल पहले ही सोहनी से उसका विवाह हुआ था। सोहनी को यह दिलोजान से चाहता था। सोहनी के दिल में भी उसके लिए उतनी ही चाहत थी। लेकिन रोजी-रोटी का चक्कर तो सदैव ही रिश्तों के बीच दीवार खड़ी करता रहा। जहांं से वह ट्रक लेकर करता रहा। इस हफ्ते भी वह सोहनी से एक भी न मिल सका। जहां से वह ट्रक लेकर चला था। वहांं अब भी कई लोग ट्रक लोड करवाने के लिए उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उसकी अच्छी आमदनी हो सकती थी। लेकिन करतार सिंह का मन सिक्कों की आवाज में सोहनी की सुरीली आवाज न दबा सका।

पंजाब पहंुंचने के दो रास्ते थे। एक तो वह रास्ता जिससे होकर वह आया था। दूसरा पहाड़ियों के बीच से गुजरने वाला रास्ता। पहला रास्ता तो लंबा था और दूसरा छोटा। लेकिन दूसरे रास्ते से होकर जाने में एक खतरा था कि उस रास्ते पर अक्सर ट्रक डाकुओं के हाथों लूट लिए जाते थे करतार सिंह एक साहसी नौजवान था। उसनें यह भी सोचा कि उसके ट्रक पर है ही क्या जो डाकू लूटेगा। वह उसी रास्ते से घर जाएगा।

ट्रक जब पहाड़ियों के करीब पहुंंचा तो दस डाकुओं ने करतार सिंह को ट्रक रोकने के लिए मजबूर कर दिया। तमाम डाकू ट्रक के पिछले हिस्से पर चढ़ गये, लेकिन तुरंत उतर गये। करतार सिंह ट्रक की हेडलाइट के करीब खड़ा अपनी पगड़ी और दाढ़ी ठीक कर रहा था। वह संतुष्ट था कि ट्रक खाली है। डाकू उसकी तलाशी लेने लगे तो करतार सिंह की जेब में रखे रुपए उनमें से एक के हाथ लगी बाकी सब एक साथ बोले,

कितने है?

पांच-पांच सौ। जेब से रुपये निकालने वाले डाकू ने गिनकर बताया। वापस कर दे और भागकर हमारे पीछेे आजा। दूसरे ट्रक की हेड लाइट चमक रही। बाकी डाकू बंदूकें संभालकर भागते हुए वह डाकू जब रुपए वापस करने लगा तो करतार सिंह को आश्चर्य हुआ और एक डाकू की मेहरबानी पर उसकी कुछ हिम्मत बंधी। वह उससे पूछे बिना न रह सका। लेकिन यह लूटे हुए रुपए मुझे क्यों वापस कर रहे हो ?

पांच सौ ही तो हैं। यहांं एक ट्रक लूटने का एक हजार तो पुलिस को भरना पड़ता है। पांच सौ का घाटा क्या हम भरेंगे? जल्दी पकड़ पीछे ट्रक आ रहा है और वह डाकू रुपए करतार सिंह के हाथ में थमाकर अंधेरे में गायब हो गया।

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