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कविताओं में प्रतिरोधी स्वर

सुरजीत सिंह सौम्य मालवीय के मौजूदा कविता संग्रह में उन्होंने 93 कविताएं संकलित की हैं। इससे पूर्व उनका एक और कविता संग्रह ‘घर एक नामुमकिन जगह’ शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। रचनाकार दिल्ली के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से समाजशास्त्र...
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सुरजीत सिंह

सौम्य मालवीय के मौजूदा कविता संग्रह में उन्होंने 93 कविताएं संकलित की हैं। इससे पूर्व उनका एक और कविता संग्रह ‘घर एक नामुमकिन जगह’ शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। रचनाकार दिल्ली के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से समाजशास्त्र पर पीएचडी की है और संप्रति हिमाचल प्रदेश के मंडी सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। उनका मानना है कि कविता किसी एजेंडे की चेरी नहीं, जो किसी घोषित लक्ष्य के साए में लिखी जाए। हिंदी के उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु के ‘मैला आंचल’ को उद्धृत करते हुए अपनी कविता के संदर्भ में वे कहते हैं कि ‘इसमें फूल भी, शूल भी, धूल भी, गुलाब भी, कीचड़ भी, चंदन भी, सुंदरता भी है और कुरूपता भी है।’ इस तरह से कवि ने अपने कवि धर्म और रचना धर्मिता की सच्चाई अपने पाठकों के समक्ष खोल कर रख दी है। अपनी कविताओं में सौम्य मालवीय ने सामाजिक विद्रूपताओं का जीवंत दिग्दर्शन कराया है।

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धार्मिक उन्माद के वशीभूत होकर जिस प्रकार से जुनूनी लोग एक सम्प्रदाय के विरुद्ध नफरत फैला रहे हैं उसका चित्रण ‘लिंचिंग’ कविता में परिलक्षित होता है। कुछ इसी तरह से क्लिष्ट काव्य की बानगी ‘धूप पड़ रही है मकानों पर : दिल्ली कविता में कवि ने यों वर्णन किया है :- ‘धूप पड़ रही है मकानों पर/ पर धूप जो आलोकित नहीं करती/ बस कठिन उजाले का लेप लगा जाती है।’ सरकारी तंत्र पर कटाक्ष करते हुए लेखक अपनी कविता में बयान करते हैं कि :- ‘सभी कल-पुर्जे समवेत स्वर में करते हैं हरकत/ जम कर तेल पिलाया हुआ तंत्र/ चलता है एक मशीनी कुशलता के साथ।’

इसी तरह से कवि ने ‘शाहीन बाग की औरतें’ ‘लिंचिंग’, ‘फलस्तीन के बच्चे’ ‘मणिपुर’ जैसी कविताओं में तंत्र के अत्याचारों को दर्शाया है। ‘एक परित्यक्त पुल का सपना’ बेहतरीन कविताओं में से एक है। जिसमें कवि का भावनात्मक रूप से जुड़ाव परिलक्षित होता है। ‘इलाहाबाद-फैजाबाद रेलवे लाइन पर/ एक ममी-सा रखा है परित्यक्त पुल/ अपने पंद्रह खंभों पर लेटा हुआ/ रोज देखता है सूर्यास्त भीष्म की तरह/ नीचे बह रही अपनी मां से पानी मांगता है।’

कवि की स्वीकारोक्ति है कि कविताओं में रोशनी की दिशोन्मुखता नहीं बल्कि आग की दहनप्रियता अधिक है और इस जलने में केवल संताप नहीं, प्रतिदिन की, संबंधों की, स्थितियों और संघर्षों की ऊष्मा भी है। कविताओं में बौद्धिकता पक्ष बोझिल है। बौद्धिक बोझिलता के बीच संग्रह की सभी कविताएं बागी सुरों का आभास कराती हैं।

पुस्तक : एक परित्यक्त पुल का सपना लेखक : सौम्य मालवीय प्रकाशक : लोक भारती पेपरबैक्स, प्रयागराज पृष्ठ : 207 मूल्य : रु. 299.

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