विसंगति की ओर विनम्र प्रतिक्रिया : The Dainik Tribune

पुस्तक समीक्षा

विसंगति की ओर विनम्र प्रतिक्रिया

विसंगति की ओर विनम्र प्रतिक्रिया

गोविंद शर्मा

वर्षों से साहित्य साधना-रत विनोद सोमानी हंस का हिंदी में यह पहला व्यंग्य संग्रह है। उपन्यास, कहानी, कविता आदि की इससे पूर्व उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इस संग्रह के व्यंग्य हास्य की पुट लिए हुए हैं। अन्य व्यंग्यकारों की तरह वे आक्रामक नहीं हैं, बल्कि विसंगति की ओर विनम्रता से इशारा करते हैं। संग्रह के कई आलेख रचनाकारों, कवियों पर हैं, कवि भी मंचीय। सारे सटीक बन पड़े हैं। थोड़े से राजनीति पर भी हैं। व्यंग्य लिखते समय सोमानी जी ने सामाजिक विषयों में मित्रों को ही नहीं श्रद्धांजलि को भी नहीं छोड़ा है। ‘मरने के बाद सब गुनाह माफ हो जाते हैं। डाकू को वीर कहा जाता है तथा शैतान को महान’।

‘चाहिए हटा और काम बन’ में चाहिए शब्द की खूब चीरफाड़ हुई है। चाहिए शब्द की आड़ में हम बहुत कुछ भूल जाते हैं, करते कुछ नहीं।

कई व्यंग्य लेखक प्रकाशक पर हैं। ‘क्या आप साहित्य के चक्कर में हैं’ में चक्कर यह है कि एक लेखक महाशय को कोई प्रकाशक छाप नहीं रहा है। उसे गुरु मंत्र मिलता है। वह अपने बेटे को प्रकाशक बनाकर अपनी किताबें छपवाता है। ‘गुणकारी फार्मूला’ में है कि पुरस्कृत होना या समाज में नेतागिरी करना है तो सफेद बाल काले नहीं, काले बालों को सफेद करने की जरूरत है।

एक अच्छी बात यह है कि सारे व्यंग्य सीमित आकार में हैं। बस, यही कि कवियों लेखकों पर ज्यादा व्यंग्य एक ही संग्रह में है, जो अखरता है।

पुस्तक : हां कहने का सुख लेखक : डॉ. विनोद सोमानी हंस प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 111 मूल्य : रु. 225.

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