अनुभूति गुप्ता
संवेदना
बाज़ार में
प्रवेश हुआ तो,
संवेदना ख़ामोश हो
एक तार पर
झूलती मिली..!
और-
कारोबारी बोला-
बिक चुकी,
ख़रीदार तुम लौट कर आना…!
क्या है ज़िन्दगी
हर मिले दुःख में
सामंजस्य बैठाना
है जीने का तरीका,
सुख की अनुभूति के साथ
संघर्षशील वक़्त की तैयारी है ज़िन्दगी,
पर्वत-सी निडरता
नदी-सी शीतलता,
कुएं की मिठास,
बाधाओं की खटास,
सूरज की तपन,
नभ-सी स्वतंत्र मानसिकता,
और धरा-सी सहनशीलता,
इनमें
सामंजस्य बैठाना
और प्रतिपल मुस्कुराना
है ज़िन्दगी…!
कभी
कभी-कभी मेरी बातों में
एक अधूरापन रहता है,
जैसे ही तुम्हें छूती हूं
अधूरा भी पूरा लगता है,
कहने को तो सारी दुनिया संग है,
अंतर्मन में छिड़ी एक जंग है,
सब अपने से लगते हैं,
दूजे पल सब दूर दिखते हैं,
कैसी इच्छाएं
जो मन से कहती हैं,
क्यों तेरी पलकों पर
वेदना की शीतल बूंद रहती है…?
वैसे तो जैसे तैसे
दिन बीत जाता है,
मेरी आंखों में उठे सैलाब को
प्रतिपल जगाता है..!
अश्रु धारा को
मैं यूं ही थाम लेती हूं,
मुट्ठी में समेट लेती हूं…
हां मैं
अश्रु धारा सी रहती हूं, कभी
कल-कल नदिया-सी बहती हूं…!