कविताएं : The Dainik Tribune

कविताएं

कविताएं

कवि और साधक

रश्मि ‘कबीरन’

करते दोनों

सतत‍् यात्रा

भीतर से बाहर

बाहर से

भीतर की

देखते सब

अदृश्य-दृश्य

आंखों से

तन-मन

आत्मन‍् की

स्थूल-सूक्ष्म

और सत्य-स्वप्न

के बीच झूलते

और जूझते

भाव-विचारों

वेग-संवेगों

आशा-ऐषणा

भय-आकांक्षा

राग- द्वेष से

चलती रहती

उनकी यात्रा

चल से अचल

अपरा से परा

बैठ समाधि

त्रिकालज्ञ, अंतर्भेदी

साधक और कवि

खोज लाते हैं

नये ब्रह्मांड

विरच डालते हैं

नव सृष्टि!

महा क्रांति

उबल रहा है आज तो जैसे

सगरा कॉलड्रन :

सुलग रहे-

कैपिटलिस्ट बुर्जुआ

प्रोलिटेरियन

खौल रहे हैं—

नस्ल, जातियां, वर्ग धर्म

एक देगची पक रहे सारे-

पास्ता-इडली, कॉफी, सत्तू

मीट और खिचड़ी

ऊपर-नीचे

घालमेल हो घूम रही हैं

घुलती गलती

सिकती उबलती

आस्था अनास्था

अतीत वर्तमान

भविष्य की

सर्व-बुभुक्षित

सर्व-आक्रोशित

अपने युग की महाक्रांति

कोई न जाने होगी कैसी?

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