डॉ़ बी. मदन मोहन
झुंड बनाकर आये बन्दर, काम हैं इनके मस्त कलंदर।
कभी पेड़ पर कूदें-फांदें,ऊधम मचाते घर के अन्दर॥
सुबह-सवेरे ये उठ जाते, घर की छत पर दौड़ लगाते।
दादी मां को सता-सताकर, चना मज़े में खाते बन्दर॥
चुनमुन की क़िताब उठाकर, छीना-झपटी करते बन्दर।
पढ़ना लिखना कुछ नहीं है, मुफ़्त में रौब जमाते बन्दर॥
जब भी प्यास सताती इनको, नलके पर आ जाते बन्दर।
बूंद-बूंद पानी पीते हैं, करतब नये दिखाते बन्दर॥
पेड़ों की डालों पर सोते, झूला उन्हें बनाते बन्दर।
बच्चों को प्यारे लगते हैं, चाहे जो कर जाएं बन्दर॥
पढ़ना-लिखना छोड़ के भैया, शैतानी जो करे निरन्तर।
ऐसा करने वाले बच्चे, तभी तो कहलाते हैं बन्दर॥