राजनीति-समाज की विद्रूपताओं का आईना
डॉ. दिलबागसिंह विर्क का उपन्यास ‘युगांतर’ ग्रामीण राजनीति के प्रभाव से उत्पन्न होने वाली सामाजिक और नैतिक गिरावट की गहरी पड़ताल करता है। इसमें मुख्य पात्र, यादवेन्द्र, राजनीति के दबाव में अपने चारित्रिक पतन का शिकार हो जाता है। वह चोरी, बेईमानी, और षड्यंत्रों का हिस्सा बनकर एक राजनीतिक मोहरे के रूप में बदल जाता है। जब एक व्यक्ति के चरित्र में गलतियां समा जाती हैं, तो यह पूरे समाज को प्रभावित करने लगती हैं। यादवेन्द्र के पिता, प्रताप सिंह, की एक गलती के बाद परिवार और घर भी इन जटिलताओं का शिकार हो जाते हैं। राजनीति में व्यभिचार, षड्यंत्र और ब्लैकमेल का घालमेल इस हद तक बढ़ जाता है कि यहां तक कि बच्चों की मासूमियत को भी शोषण और उपयोग के लिए साधन बना लिया जाता है। उपन्यास में ‘शांति’ और ‘यादवेन्द्र’ इन षड्यंत्रों और राजनीति के प्रतीक बनकर उभरते हैं।
राजनीति में आज ‘यूज़ एंड थ्रो’ की प्रवृत्ति और ‘जिस्म को हथियार बनाना’ एक सामान्य बात बन चुकी है। इस व्यवस्था में सभी कुछ राजनीति के अधीन हो जाता है—सामाजिक जीवन से लेकर व्यक्तिगत जीवन तक। यादवेन्द्र इस खेल का एक साधारण मोहरा बनकर पुलिस और सरकार के हाथों में खड़ा होता है।
दरअसल, राजनीति अब न्याय और सेवा की जगह लूट, धोखा और अवसरवाद का प्रतीक बन चुकी है, जहां झूठ को सच बनाने और सच को झूठ में बदलने की रणनीति आम है।
राजनीति अपने झूठे न्यायोचित स्वरूप को लंबे समय तक बनाए नहीं रख पाती और फिर से षड्यंत्रों के चक्कर में फंसकर अपने पुराने रूप को दोहराती है। समाज में कुछ लोग तो राजनीति के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं, जबकि अन्य केवल निजी हितों के लिए उसके साथ होते हैं। यही कारण है कि सामान्य जनता ‘यथा राजा तथा प्रजा’ के सिद्धांत के अनुसार नेताओं के पीछे चलकर उन्हें सहयोग देती है।
उपन्यास राजनीति और सामाजिक जीवन की विद्रूपता और दुश्चक्र की पूरी कहानी प्रस्तुत करता है। वैसे यादवेन्द्र और शांति की पुत्री तथा यादवेन्द्र और रमन की पुत्री, वाग्दत्ता, राजनीति में परिवर्तन लाने का संकल्प करती हैं। वे जनचेतना का एक मंच बनाकर समाज में व्याप्त हर प्रकार की बुराई को समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाती हैं।
उपन्यास ‘युगांतर’ के माध्यम से वर्तमान राजनीति और समाज के चरित्र के दोहरेपन को उद्घाटित करता हुआ जीवन और राजनीति में एक नये युग का सूत्रपात करने का सार्थक प्रयास है।
पुस्तक : युगांतर लेखक : डॉ. दिलबागसिंह विर्क प्रकाशक : साहित्यागार धामाणी मार्केट की गली, जयपुर पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 250.
