
प्रद्युम्न भल्ला
डॉ. बीना चतुर्वेदी के सातवें एवं ताजा कहानी-संग्रह ‘गृहलक्ष्मी’ से गुजरते हुए वर्णनात्मक शैली में घटनाक्रमों को भावों का अमलीजामा पहनाकर सुंदर ढंग से व्यक्त करने का प्रयास मुखर हुआ है। उन्होंने अपने इर्द-गिर्द बिखरे विषयों को पाठकों के सम्मुख रखने का प्रयास कहानियों के रूप में किया गया है।
हालांकि तथ्यों का चुनाव सुंदर है, मगर उनकी अभिव्यक्ति के लिए लेखिका को नए घटनाक्रमों एवं गुंथे हुए परिवेश के स्तर पर और प्रयास दरकार हैं।
कहानियों में रोचकता कम है, भाषा सरल एवं सहज है। पहली कहानी ‘गृहलक्ष्मी’ में दर्शाया गया है कि केवल गृहलक्ष्मी कहने से कोई महिला गृहलक्ष्मी नहीं बनती। उसके लिए काम को पूजा मानकर गृहस्थ में कोल्हू के बैल की तरह जुते रहना पड़ता है।
कहानी ‘नीड़ का बिरवा’ में मित्रता पूर्ण रिश्तो को संबंधों में बदलने की दास्तान सुंदर ढंग से व्यक्त की गई है। ‘भाभी मां’ पारिवारिक रिश्तों में रिसाव और तकरार का अच्छा उदाहरण पेश करती हुई कहानी है।
कहानी ‘पाणिग्रहण’ में भी सुनयना और पीयूष की शादी का घटनाक्रम है। कहानी ‘नियति’ आजकल हो रहे संबंधों में सावधानी की तरफ संकेत करती है मगर कहानी नारी सशक्तीकरण को नहीं दर्शाती और आद्या के पलायन की तरफ जाने से कोई ठोस समाधान प्रस्तुत नहीं कर पाई।
कहानी ‘सर्वस्व’ औरत की दुख भरी कहानी है जो मेहनत और सही निर्णय लेने की क्षमता जीवन की दिशा बदल देती है की तरफ संकेत करती है। ‘दरकते रिश्ते’ महत्वाकांक्षी बच्चों से परिवारिक बिखराव की तरफ इशारा करते हुए कड़वी सच्चाई को बयान करती है। अखिल का यह संदेश कि आज की दुनिया में भावनाओं और संवेदनाओं का स्थान गौण होता जा रहा है, आज का इंसान रंग बदलने में गिरगिट से बहुत आगे निकल गया है, यह केवल हमारे साथ ही नहीं हुआ है बल्कि हर और ऐसे ही हालात हैं और यह बात सौ प्रतिशत सही है कि स्वार्थपरता के कारण ही रिश्ते दरकने लगे हैं।
संग्रह की कई अन्य कहानियों में भी महिलाओं के संघर्ष, पारिवारिक व्यवस्था में वृद्ध लोगों की अनदेखी, सामाजिक सरोकारों के टूटने से पैदा हुई परिस्थितियों और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने का प्रयास है।
पुस्तक : गृहलक्ष्मी लेखिका : डॉ. बीना चतुर्वेदी प्रकाशक : साहित्यसागर प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 250.
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