रोचिका अरुण शर्मा
बड़ी इमारत से देशभक्ति के गीतों की धुन सुनाई दे रही थी| कुछ ही देर में जन, गण, मन… सुनाई देने लगा| छज्जू अपने पिता के साथ इमारत के बाहर सावधान मुद्रा में खड़ा हो गया| जैसे ही राष्ट्र गान समाप्त हुआ वह पुनः विश्राम की मुद्रा में आया और इमारत के वाचमैन को बोला ‘अंकल एक बार बिल्डिंग में खबर कर दीजिये न कि मैं आ गया हूं।’
खुले मैदान में छज्जू ने अपनी दुकान लगा ली| कुछ ही देर में तिरंगे से मेल खाते परिधानों में वहां रहने वाले लोग उसकी दुकान की तरफ आते दिखाई दिए| शायद वे अभी सोसायटी के पार्क में गणतंत्र दिवस हेतु तिरंगा फहराकर आये थे| अरे! यह क्या छज्जू , तुम तो प्रत्येक वर्ष बड़ा तिरंगा झंडा लेकर आते हो, इस बार झंडा क्यों नहीं? ‘मैडम, दरअसल बाबा बोले इस बार विद्यालयों में कार्यक्रम ऑनलाइन होंगे| ज्यादातर दफ्तरों में भी आजकल सबकुछ ऑनलाइन चल रहा है, शायद लोग तिरंगा झंडा कम ही खरीदें| वे बोले, इस बार तिरंगा मास्क लेकर चलना चाहिए| लेकिन यह मास्क तो बीमारी का प्रतीक है, जबकि तिरंगा आजादी का| वायरस ने हमें गुलाम बनाया हुआ है| हमारे आपसी मेलजोल एवं त्योहारों पर भी जब चाहे रोक लगवा देता है| स्कूल भी जब-तब बंद करवा देता है| मैं तो चाहता हूं कि जल्दी ही सभी को मास्क से आजादी मिल जाए| सो मुझे बाबा की बात जमी नहीं| ‘लेकिन हम तो रोज कमा कर खाने वाले हैं, इन प्रतीकों के झमेले में पड़ें तो कल चूल्हा भी नहीं जलेगा।’ बाबा का कहना भी उचित है, इसलिए मैं बाबा के साथ ये तिरंगे के तीन रंग के पौधे लेकर आ गया| हरियाली पूरे वर्ष हमें प्राणवायु देगी जो इस मास्क वाली घुटन भरी जिन्दगी में अत्यावश्यक है| ये हरसिंगार, केसरिया गुलाब, सफ़ेद गुलाब एवं हरे पत्तों का तिरंगा आप सभी गमलों में लगायें और पूरे वर्ष आजादी पर्व मनायें| बड़ा तिरंगा तो नहीं लाया लेकिन पौधों के साथ छोटा-सा तिरंगा झंडा भी मुफ्त है मैडम|
‘मुफ्त मुफ्त, तिरंगा झंडा मुफ्त’ अपनी मां की उंगली पकड़े, सफ़ेद पायजामा कुर्ता पहने आशीष बोला| ‘लेकिन आजादी मुफ्त नहीं मिली थी, बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने जान की बाजी लगाई थी और फिर 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ था।’ छज्जू ने बताते हुए आशीष को झंडा थमाया| ‘हम छोटे-छोटे तिरंगे सम्मान पूर्वक बालकनी में गमलों के साथ लगायेंगे और स्वतंत्रता सेनानियों की तरह धरती को हरियाला मास्क पहना कर प्रदूषण से आजाद करवाएंगे’, आशीष तिरंगा लेकर दौड़ा| ‘छज्जू तुम तो बहुत देशभक्त व्यापारी हो’, मैडम मुस्कुरायीं| आशीष के घर गमले एवं तिरंगा देख पिंकी, मिंकू, रूबी एवं अन्य बच्चे भी छज्जू से तिरंगा लेने दौड़ पड़े| छज्जू के पौधे झट से बिक गए| इमारत की सभी बालकनियों में तिरंगे पौधों के गमले सज गए थे और छज्जू द्वारा पौधों के साथ मुफ्त दिया गया छोटा तिरंगा लहरा रहा था| पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा था| पौधे बेचने से हुई कमाई से शाम को छज्जू की मां ने तिरंगा चावल पकाया| छज्जू भी अपने परिवार के साथ पर्व मना रहा था|