छोड़ो
जाने भी दो
वो बहस और लड़ाइयां
जो किसी काम की नहीं
वो बंधन, वो चीज़ें
जो तुम्हारे नाम की नहीं
जज़्बात कुछ ज़हरीले
जो आगे बढ़ने नहीं देते
झटक डालो उम्मीदें
गर सही अंजाम की नहीं
जीना जो आसान करे
अपना लो बस उसे
अहमियत ना हो जहां
जगह वो आराम की नहीं
मन खुद में मगन हर पल
महकता बस साथ हो अपने
बदलें बाहर मौसम कितने
फ़िक्र दुनिया तमाम की नहीं
छोड़ो जाने भी दो
वो बहस, वो लड़ाइयां
जो किसी काम की नहीं
बस जाने ही दो…
– ज्योत्स्ना कलकल