अरुण नैथानी
यूं तो सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर किसी परिचय की मोहताज नहीं है। उन पर बहुत किताबें लिखी गईं, लेकिन यदि उन्हीं के शब्दों में प्रामाणिक जानकारी मिले तो संगीत व सिनेजगत के एक कालखंड को समझना आसान हो जायेगा। लंदन की डॉक्यूमेंटरी फिल्म निर्माता नसरीन मुन्नी कबीर ने कुछ वर्ष पूर्व चैनल फोर के लिये छह कड़ियों वाली डॉक्यूमेंट्री बनायी थी। लता जी पर कुछ वर्ष बाद उन्होंने उनसे लंबे समय तक हुई बातचीत को पुस्तक रूप में अंग्रेजी में प्रकाशित किया। अब वही पुस्तक नियोगी बुक्स से डी. श्याम कुमार के अनुवाद के जरिये हिंदी पाठकों तक पहुंची है। इस पुस्तक को पढ़ना इसलिये भी रुचिकर है क्योंकि यहां सुनी-सुनायी व गढ़ी हुई बॉलीवुडी कथाओं के लिये कोई जगह नहीं है। कई महीनों से वर्ष तक चले साक्षात्कार के बाद जो प्रामाणिक पुस्तक आई है, वह लता जी की गरिमा के अनुकूल है।
पुस्तक ‘अपने खुद के शब्दों में… लता मंगेशकर’ लता के बचपन से लेकर सफलता के शिखर तक की दास्तां का जीवंत चित्रण है। उसमें उनके परिवार के संघर्ष, पिता से संगीत की शिक्षा, परिवार की मुश्किलें और पिता के जाने के बाद पिता की भूमिका का जिक्र है, जिसके लिये उन्होंने कड़ी मेहनत की। फिल्मी जीवन के प्रति एक रूढ़िवादी सोच रखने वाले पिता के प्यार-दुलार व सख्ती भी उन्होंने बयां की। हालांकि पिता के जाने के उपरांत परिवार को संबल देने के लिये मराठी व बाद में हिंदी फिल्मों में कुछ काम किया, मगर वह इसको लेकर सहज नहीं रही।
पुस्तक बताती है कि लता को महान क्यों कहा जाता है। सफलता की ऊंचाई छूने के बाद सादगी का जीवन और जीवन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता और उसी के अनुरूप परिवार को ढालना, उनकी अभिभावक की भूमिका को उजागर करता है।
पुस्तक की खास बात यह है कि जहां डेढ़ सौ पन्नों में उनका साक्षात्कार सिमटा है, तो बाकी डेढ़ सौ पन्नों में दुर्लभ व मनोहारी चित्र समाहित हैं, जो आज तक कहीं देखे नहीं गये। उनकी संगीत यात्रा और इस यात्रा से जुड़े प्रसंग, विवाद और रोचक पहलू लता की जुबानी पाठकों से रूबरू हैं।
पुस्तक में बॉलीवुड के दिग्गजों मसलन सज्जाद हुसैन, तलत महमूद, खय्याम, नौशाद, गुलजार, जावेद अख्तर, दिलीप कुमार, वहीदा रहमान, यश चोपड़ा और जया बच्चन की जुबानी लता के जीवन से जुड़े अनुभव व विशिष्टताओं को उजागर करते लेख हैं। वहीं मंगेशकर परिवार के सदस्यों के गहरे अहसास शब्दों के रूप में मुखरित होकर लता जी का व्यक्तित्व उकेरते हैं।
सही मायनो में यह पुस्तक लता जी के जीवन को संपूर्णता में देखने का एक प्रामाणिक दस्तावेज है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उनके संगीतमय जीवन का सफर उन्हीं के शब्दों में सामने आता है। जो यह भी निष्कर्ष देता है कि यदि उन्हें ‘भारत रत्न’ का सम्मान मिला तो यह पुरस्कार की गरिमा बढ़ाने वाला था।
विभिन्न संगीतकार और गीतकारों ने अपने अनुभवों के जरिये बताने की कोशिश की है कि कैसे अनूठी गायन शैली, शब्दों पर अधिकार और मर्मस्पर्शी सुरों से लता जी ने कालजयी गीतों की रचना की। जिसके चलते पांच दशक से अधिक समय तक बॉलीवुड के संगीत में उनका वर्चस्व कायम रहा। बहरहाल, लता जी ने इस पुस्तक में अपने प्रिय-अप्रिय, वाद-विवाद, अपने-पराये और जीवन यात्रा को पूरी ईमानदारी और साफगोई से अभिव्यक्ति किया है लेकिन पुस्तक में कई जगह ऐसा जरूर लगता है कि अनुवाद में शब्दों के चयन में चूक हुई है।
पुस्तक : अपने खुद के शब्दों में… लता मंगेशकर लेखिका : नसरीन मुन्नी कबीर अनुवाद : डी. श्याम कुमार प्रकाशक : नियोगी बुक्स, नई दिल्ली पृष्ठ : 228 मूल्य : रु. 750.