मीरा गौतम
मनमोहन गुप्ता मोनी का सद्य: प्रकाशित कहानी संग्रह ‘पापा का फेसबुक अकाउंट’ नई ताजगी के साथ पाठकों के समक्ष उपस्थित है। इसमें 10 कहानियां संगृहीत हैं। अतीत से वर्तमान की ओर लौट रही कहानियों में कहीं भी विचलन दिखाई नहीं देता। लेखक की सधी हुई दृष्टि, व्यापक अनुभव और संस्कारशील सोच इन्हें प्रखर बना रही है। सूचना तंत्र, बाजारवाद वैश्विक परिदृश्य और कोरोना महामारी से उपजे संकट के बीच ये कहानियां समाधान की ओर गतिशील होती दिखाई दे रही हैं।
इन कहानियों की खासियत यह है कि जहां भी कहीं बिखराव और रिश्तों के दरकने की स्थिति आती है, वहीं लेखक की पैनी दृष्टि और सूझबूझ इस दरकन को समेटकर उसके सही अंजाम तक पहुंचा देती है। वैचारिक दुराग्रह से दूर ये कहानियां मानवीय रिश्तों में सहजात संबंध स्थापित करती चल रही हैं। इसी सकारात्मक सोच के कारण कहानियों में कहीं भी जटिलता दिखाई नहीं देती। हां, कहानियों को आत्मसात करने और इनकी पदचाप को महसूस करने के लिए भारत की मिट्टी की सुगंध को हृदय की अंजुरी में भरकर चलना होगा। कस्बे, नगर, महानगर और गांव की पगडंडियों में आवाजाही करती ये कहानियां पूरे भारत का स्पंदन साथ लिये चल रही हैं। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘पापा का फेसबुक अकाउंट’ में व्हाट्सएप चैटिंग और सोशल मीडिया के संतुलित उपयोग ने यह साबित किया है कि आभासी दुनिया का यह माध्यम उलझे रिश्तों को दुविधाओं से निकाल देने की ताकत भी रखता है। पिता की मृत्यु के बाद भी उनका संस्कारशील पुत्र विपिन उनका फेसबुक अकाउंट जारी रखता है, उनके मित्रों को बिना यह बताए कि उसके पिता मर चुके हैं। इसी तरह वह अपने मन में अपने पिता को जीवित रखता है। पिता के सही पालन-पोषण ने उसे विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता प्रदान की है। पुरानी पीढ़ी में बदलाव और पुत्र विपिन की विवेकशीलता कहानी को सुखांत मोड़ पर ले आती है। स्पष्ट है कि सोशल मीडिया के सार्थक उपयोग से उलझे रिश्तों को सुलझाया जा सकता है।
‘पापा गंदे हैं’ पिता अंतरिक्ष, मां श्रेष्ठा और तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली बेटी राधिका की कहानी है। मध्य वर्गीय परिवार से निकली यह कहानी मां श्रेष्ठा के सफाई के प्रति अति दुराग्रह के कारण राधिका पर कहर बनकर टूट पड़ता है। कहानी का कारुणिक अंत माता-पिता को एक चेतावनी देता है कि अपने अति दुराग्रह छोड़कर बच्चों की मासूमियत का ध्यान रखें। कहानी ‘कहानी बोलेगी’ गांवों में बदलाव की शक्तिशाली कहानी है। यह कहानी आधुनिक भारत के गांवों में अलख जगाती कहानी है। समान अधिकार, समान न्याय वाले इस देश में अभी यह न्याय कथा अधूरी लगती है। कहानी अधिकारों के प्रति जागरूक कर रही है।
‘जहां से चले थे’ कहानी के तीन पात्र बिंदु राहुल और मंजू 30 वर्षों बाद एक वृद्धाश्रम में मिलते हैं। राहुल और बिंदु का विवाह नहीं हो पाया और मंजू राहुल से एकतरफा प्रेम में निराश होकर समाज सेवा में लग जाती है। यह वृद्धाश्रम उसी का है। ये आपस में बीते संस्मरण सुनाते हैं। जीवन के चक्र ने तीनों पात्रों को फिर उसी मोड़ पर ला खड़ा किया है। ‘कोरोना का बाइस्कोप’ कोरोना महामारी से बेरोजगार हुए मेहनतकश की कहानी है, जिसकी बेटी भूख और ज्वर से तड़पकर मर जाती है। पत्नी के जेवर बेचकर बचाए गए पांच सौ रुपये में बाइस्कोप खरीदकर उसमें अखबारों की कटिंग दिखाकर भूख को परिभाषित करता है। ‘अब ऐसा नहीं’ कहानी पाक विभाजन से वर्तमान की यात्रा करती हुई संदेश देती है कि अब देश आजाद है।
पुस्तक : पापा का फेसबुक अकाउंट लेखक : मनमोहन गुप्ता मोनी प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, मेरठ पृष्ठ: 94 मूल्य : रु. 215.