सत्यवीर नाहड़िया
बाल साहित्य को पढ़ना जितना सरल लगता है, इसे रचना उतना ही कठिन होता है। बाल मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर रचा गया बाल साहित्य ही अपने उद्देश्य में सफल हो पाता है। आलोच्य कृति पेड़ और बादल ऐसा ही एक रोचक बालकथा संग्रह है, जिसमें दस प्रेरक बालकथाएं बालमन के बेहद करीब जान पड़ती है।
करीब आधी सदी से बाल साहित्य की साधना में लीन रहते हुए लगभग तीन दर्जन बाल कृतियां दे चुके जाने-माने बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा द्वारा रचित ये सभी बालकथाएं पर्यावरण पर केंद्रित हैं। संग्रह की पहली शीर्षक कथा ‘पेड़ और बादल’ में जहां वर्षा एवं पौधों के संबंधों को बड़ी मार्मिकता से दर्शाया गया है, वहीं ‘जल कंजूस’ नामक कथा में शिक्षक द्वारा खेल-खेल में जल की महिमा समझाना प्रेरक है। नीम का बीज कहानी में बच्चों के यक्ष प्रश्न पर वैज्ञानिक का मौन होना सोचने पर विवश करता है तथा जल चोर में नित्य ओवरफ्लो होने वाली पेयजल टंकियों के पानी का सदुपयोग प्रभाव छोड़ता है।
हरियल तोते तथा उसके मालिक बदलू के बीच गांव-शहर की तुलनात्मक चर्चा पर आधारित कहानी ‘हमें हमारा घर दो’ बेहद मर्मस्पर्शी है। ‘पत्ते नहीं कान’ नामक कथा हमें समझाती है कि पेड़ के पत्ते तोड़ना किसी का कान तोड़ना-मरोड़ना है। सगे भाइयों के बंटवारे में साझे कुएं और पेड़ों को बचाने की कथा ‘बच गए पेड़ और कुआं’ तथा जड़ व तने के मानवीयकरण पर आधारित कथा ‘बच गया पेड़’ बेहद शिक्षाप्रद बन पड़ी हैं। राजस्थान के राज्यवृक्ष खेजड़ी को बचाने के लिए बिश्नोई समाज की अमृता देवी की मार्मिक शहादत पर आधारित ‘अमृता देवी ने बचाए पेड़’ करीब तीन सदी पुरानी सत्यकथा रोंगटे खड़े कर देती है। हर कहानी के साथ प्रासंगिक चित्र, सुंदर छपाई तथा आकर्षक आवरण कृति की अतिरिक्त विशेषताएं हैं।
पुस्तक : पेड़ और बादल लेखक : गोविंद शर्मा प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 63 मूल्य : रु. 200.