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वीरांगनाओं की प्रेरक कथाएं

पुस्तक समीक्षा
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रश्मि खरबंदा

पौराणिक काल में औरतों को पुरुषों के समान समझा जाता था। फिर मध्य काल और मुगल साम्राज्य में उनके हकों का अपकर्ष ही हुआ। आधुनिक इतिहास से लेकर आज तक धीरे-धीरे नारी के सम्मान और अधिकार में फिर से सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं। इस दुर्गम और जटिल यात्रा में कुछ स्त्रियां ऐसी भी हुईं, जिन्होंने अनुपम साहस और विलक्षणता दिखाई। प्रस्तुत पुस्तक ऐसी ही 20 वीरांगनाओं की अद्भुत कहानियों का संग्रह है।

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पुस्तक में रामायण, महाभारत एवं अन्य पौराणिक कथाओं की देवियों के योगदान को उजागर किया गया है। इसी के साथ मणिकर्णिका, अहिल्या बाई होलकर, रानी दुर्गामति जैसी हस्तियों की वीरता का भी वर्णन है। इनमें कई ऐसे नाम जो जन-मानस के विवेक से भुलाए जा चुके हैं या जिनके पात्र को कोई ज़्यादा महत्व नहीं देता। गौरतलब है कि राजा जनक को सीताजी के पिता के रूप में जाना जाता है, अपितु इस बात का उल्लेख कम ही किया जाता है कि वे उर्मिला के भी पिता थे।

ऐसे ही एक कथन के अनुसार, राम-सीता जब वनवास को प्रस्थान करने लगे थे तब लक्ष्मण उर्मिला से मिलने गए। सुसज्जित खड़ी उर्मिला को देख वह क्रोधित हो जाते हैं कि ऐसे मौके पर भी उन्हें शृंगार की पड़ी है। असल में यह उर्मिला ने यह जान-बूझकर किया था ताकि लक्ष्मण जी उनसे विमुख होकर वनवास जाएं और पूरे समर्पण से राम-सीता की सेवा करें।

आज जहां नई पीढ़ी पौराणिक साहित्य से दूर होती जा रही है, यह पुस्तक उन्हें अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का काम करेगी।

पुस्तक : समाज की शक्ति स्तंभ नारियां लेखिका : अरुणा त्रिवेदी प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 252 मूल्य : रु. 250.

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