सुशील कुमार फुल्ल
मधुकांत द्वारा रचित ‘गूगल बॉय’ एक आदर्शपरक उपन्यास है, जो अपनी बनावट एवं बुनावट में कुशल शिल्पी का अहसास करवाता है। नायक गूगल बाय के अतिरिक्त उसका पिता गोपाल, गोपाल की पत्नी नारायणी, गूगल की मित्र अरुणा, बलवन्त आदि प्रमुख पात्र हैं। नायक गूगल एक कर्मठ युवक है जो अपने पिता के व्यवसाय को सहर्ष अपनाता है। जीप दुर्घटना में पिता की मृत्यु खून न मिलने के कारण होने से रक्तदान को महादान मानते हुए इसी काम में समर्पण भाव से लग जाता है।
उन्नीस खण्डों में विभाजित उपन्यास ‘गूगल बॉय’ पहले दो तीन अध्यायों में किंचित लड़खड़ाता चलता है। पिता को समय पर खून नहीं मिल सका। इसलिए गोपाल की असामयिक मृत्यु हो जाती है और अरुणा के साथ मिल कर उसका मिशन रक्तदान शिविर लगवाना और लोगों को इसके लिए प्रेरित करना हो जाता है। पुराना सोफा, कुर्सी, खराद लाने से उस का भाग्य ही खुल जाता है। कुर्सी में सोने की 100 गिन्नियां चिपकी मिल जाती हैं और इस धन राशि को वह और उसकी मां नारायणी बांके बिहारी का प्रसाद मान कर जनहित में लगा देते हैं।
उपन्यास का शीर्षक कुछ और भी हो सकता था क्योंकि गूगल बॉय से भ्रामक ध्वनि निकलती है। इसमें नेट इंटरनेट की तो कोई बात ही नहीं। फिर भी उपन्यास किशोरों एवं अन्य पाठकों के लिए भी रोचक एवं प्रेरणाप्रद तथा सदाशय से लिखी उपयोगी रचना है।
पुस्तक : गूगल बॉय लेखक : मधुकांत प्रकाशक : एसपी कौशिक इंटरप्राइजिज, दिल्ली पृष्ठ : 110 मूल्य : रु. 300.