सत्यवीर नाहड़िया
हरियाणा प्रदेश में लोक नाट्य परंपरा प्राचीन काल से ही समृद्ध रही है, जिसके कथानक को आगे बढ़ाने वाली गायन विधा रागिनी, रागनी, रागणी आदि नामों से जानी जाती है। कभी किस्सों पर आधारित रागनियां ही लिखीं तथा गायी जाती थीं, किंतु समय के साथ रागनी का स्वतंत्र स्वरूप भी सामने आया है। हरियाणवी लोक गायन की सिरमौर रही रागनी के गीत की तरह तीन मुख्य घटक टेक (मुखड़ा), कली (अंतरा) व तोड़ होते हैं।
हर राग पर आधारित पांच रागनियां की परंपरा के चलते ‘छह राग, तीस रागनी’ की कहावत बेहद प्रसिद्ध रही है। छंदबद्धता के चलते रागनी की गेयता देखते बनती है, यही कारण है कि एक अच्छी रागनी बेहद जल्दी जुबां पर चढ़ने का मादा रखती है।
आलोच्य कृति ‘रंगीला हरियाणा’ कवि राजबीर वर्मा का यह दूसरा रागनी संग्रह तथा चौथी पुस्तक है, जिसमें एक सौ पांच रचनाओं के माध्यम से बहुरंगी हरियाणवी संस्कृति को प्रमुखता से रेखांकित किया गया है। एक ओर जहां संग्रह में लोक प्रचलित किस्सों सेठ ताराचंद, विक्रम-भरथरी, नरसी सेठ, मंदोदरी, कृष्ण-अर्जुन आदि पर केंद्रित रागनियां शामिल हैं, वहीं संत-महात्माओं, महापुरुषों, लोक कवियों, तीज-त्योहारों तथा ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित रचनाओं को भी स्थान दिया गया है। संग्रह में सामाजिक विषमताओं पर केंद्रित रागनियां बेहद मार्मिक बन पड़ी हैं तथा आध्यात्मिक विषयों पर भी रचनाकार ने अनूठे अंदाज में कलम चलाई है।
संग्रह में रचनाकार ने हरियाणा महिमा के बहुआयामी पक्षों को कलमबद्ध करने के अलावा बढ़ती आबादी, कन्या भ्रूण हत्या, बेटी बचाओ, नशा निवारण आदि विषयों पर भी प्रेरक रागनियां दी हैं। गहरा मतलब कहै रागणी, जिसका कोई जोड़ नहीं। ऐसी कोई नहीं रागणी, जिसमें कोई तोड़ नहीं।
पुस्तक : रंगीला हरियाणा रचनाकार : राजबीर वर्मा प्रकाशक : अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 200.