Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

आदिवासियों का इतिहास और पीड़ा

पुस्तक समीक्षा

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

लेखक रणेन्द्र के उपन्यास ‘ग्लोबल गांव का देवता’ में असुर आदिवासियों के जटिल जीवन को आधार बनाकर झारखंड की कोयला और बॉक्साइट खदानों में पिसते आदिवासियों की पीड़ा और पहचान के संकट की गहन पड़ताल की गई है, जो अब अपने चरम पर पहुंच चुका है।

झारखंड सहित देश के तमाम आदिवासी सदियों से गुलामी की चपेट में हैं। आज़ादी के 78 साल बाद भी वे उपेक्षित, शोषित और पीड़ित हैं। आदिवासियों के जीवित रहने और पेट भरने के मुख्य साधन—उनकी पुश्तैनी ज़मीन और जंगल—गैर-जनजातीय लोगों ने छीन लिए हैं। जहां इन्हें वनों का मालिक होना चाहिए था, वहीं इन्हें वहां से बेदखल कर दिया गया। अपनी भूमि, वनस्पति और संसाधनों को गंवाकर ये अपनी ही धरती पर बेगानों जैसा महसूस करते हैं।

Advertisement

आदिवासियों की रक्षा के लिए कोई आवाज़ नहीं उठती, जबकि प्रभावशाली तबका उनकी भलाई के नाम पर उनका शोषण करता है। राजसत्ता केवल दलालों, पूंजीपतियों और सफेदपोशों के हितों की पोषक है, जिससे आदिवासियों का निरंतर शोषण और उनका अस्तित्व संकट में है। आदिवासियों ने इस अत्याचार के भयावह परिणामों को झेला है।

Advertisement

पुराने जमाने में असुर आदिवासी हजारों साल तक वनपति, भूमिपति, दुर्गपति, काश्तकार और उच्च कोटि के शिल्पकार रहे हैं। ये आदिवासी ही थे जिन्होंने आग और धातु की खोज की और धातु को पिघलाकर औजार बनाए। विरोचन का पुत्र दैत्यराज बलि पाताल लोक का राजा था। शक्तिशाली राजा-बाणासुर (जिनकी बेटी उषा, कृष्ण के पोते अनिरुद्ध के साथ ब्याही गई) ने उत्तर भारत के बड़े हिस्से, उत्तरी बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों तक शासन किया। आरा (बिहार) से 3 कि.मी. दूर बसा बकरी गांव बकासुर का बसाया हुआ माना जाता है। उससे आगे गया नगर है, जिसे गयासुर नामक असुर ने बसाया था।

मगध का प्रतापी राजा जरासंध असुर कुल का सम्राट हुआ, जिसकी राजधानी राजगृह हुआ करती। नवादा के सिधौल गांव होकर राजगीर जाने वाली पुरानी सड़क आज भी ‘असुरिन’ कहकर पुकारी जाती है। आजमगढ़ से चौबीस कि.मी. दूर धासी नामक जगह पर मिट्टी के विशाल किले के अवशेष हैं, जिन्हें जनश्रुति असुरों का मानती है। आजमगढ़ में ही कुंवर और मुंगी नदियों के किनारे के पुराने खंडहर आज भी असुरों के कहे जाते हैं। इतने नामवर और बलशाली होते हुए भी असुरों के लिए गैर-जनजातीय लोगों ने इतनी भी जगह नहीं छोड़ी जहां उनकी कोई पहचान बची रहती। उनके वंशधरों की विरासत को नष्ट करने की प्रक्रिया आज भी जारी है।

पुस्तक : ग्लोबल गांव के देवता लेखक : रणेन्द्र प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 151 मूल्य : रु. 250.

Advertisement
×