कोकिल के स्वर सी…
अपनी तो सुबह हिन्दी से, सांझ भी हिंदी में ढलती है।
कदम – कदम हर डगर, हिंदी के साथ चलती है।
स्वप्न हिंदी हिंदी जाग्रत, हिंदी निर्गम हिंदी आगत।
हिंदी से हर प्रहर पावन, हिंदीमय श्वांस चलती है।
हिंदी में हास-परिहास, हिंदी दे हमको सुवास।
कोकिल के स्वर सी हिंदी, मधुर कंठों से निकलती है।
प्रभाव इसका फैल रहा है, सबसे सदा ही मेल रहा है।
छत्रछाया में इसकी सदियों से, कितनी भाषाएं पलती हैं ।
– व्यग्र पाण्डे
हिंदी मेरी भाषा
हिंदी मेरी भाषा प्यारी, इस पर है अभिमान मुझे।
जहां-जहां भी हिंदी बोलूं, मिलता है सम्मान मुझे।
गर्व से लिखूं देवनागरी, जो सबको आए हैं पसंद।
देवों की यह लेखन शैली, लगे नहीं है कहीं द्वंद।
मोहक भाषा के अक्षरों में, दिखते हैं भगवान मुझे।
हिंदी मेरी भाषा प्यारी, इस पर है अभिमान मुझे।
स्पष्ट हमेशा बोली जाती, वैसा ही लिख पाते सब।
संस्कृत की सुता कहाती, नतमस्तक हो जाते सब।
– गोविन्द भारद्वाज