राजवंती मान
समीक्षाधीन पुस्तक ‘मैं बंदूकें बो रहा’ अशोक अंजुम द्वारा भगत सिंह के जीवनवृत्त पर आधारित खंडकाव्य है। भगत सिंह ने देश-प्रेम और शहादत तक को इस कदर रोमानी बना दिया था कि वे हरदिल अजीज और युवाओं के आदर्श बन गये और हमेशा बने रहेंगे। भगत सिंह, जिनका विराट व्यक्तित्व, वैचारिकी, संघर्ष, चिंतन, दर्शन इतना गहरा है कि दोहा विधा में समेटना श्रम साध्य कार्य है। फिर महत्वपूर्ण यह भी कि किस छंद में अपनी बात को कहा जाए?
व्याकरणिक व्यवस्था निभाते हुए अशोक अंजुम ने 505 दोहों का यह खंडकाव्य पन्द्रह अध्यायों में तरतीब दिया है। भगत सिंह के जन्म और बचपन से लेकर जलियांवाला बाग कांड, असहयोग आंदोलन, नेशनल कॉलेज, गृह त्याग, गिरफ्तारी, साइमन कमीशन का विरोध, कोलकाता यात्रा, असेंबली बम कांड, गिरफ्तारी, न्यायालय में पेशी, जेल का वातावरण, लाहौर षड्यंत्र, फांसी की सजा का ऐलान और अंतिम यात्रा तक का विवरण प्रस्तुत करता है। भगत सिंह को देशभक्ति विरासत में मिली। दादा, पिता, चाचाओं सबने देश की स्वतंत्रता के यज्ञ में अपनी आहुति दी।
अशोक अंजुम दोहे, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। कवि अशोक के इस दोहे में बाल-भगत की मासूमियत और आजादी की उठती तरंग देखिये– ‘तब बालक ने जोश में उत्तर दिया विशेष/ मैं बंदूकें बो रहा, हो स्वतंत्र निज देश।’ जलियांवाला कांड पर यह दोहा– ‘बारह साला भगत ने, सुनी खबर जिस वक्त/ हुई विक्षिप्तों सी दशा, लगा खौलने रक्त।’
असहयोग और विदेशी कपड़ों के बहिष्कार पर यह दोहा आन्दोलन की प्रकृति को प्रकट करता है– ‘घर घर जाकर वे करें, जमा विदेशी वस्त्र/ चौराहे पर फूंक दें, करके तब एकत्र।’ क्रांति की ओर बढ़ते पांव की नुमाइंदगी करता यह दोहा– ‘उहापोह से भर गए भगत सिंह के प्राण/ सिर्फ अहिंसा किस तरह, कर सकती है त्राण’?
भगत सिंह सच्चे क्रांतिकारी और बड़े लिखारी थे। उनके लेखन को दर्शाता यह दोहा— ‘क्रांतिकारियों पर लिखे, लेख उस समय खूब/ ‘चांद’, ‘अकाली’, ‘कीर्ति’, के, बने लेख महबूब।’ असेम्बली बम्ब का दर्शन इस दोहे में देखिये– ‘हो न हताहत एक भी, बम फेंकें उस ठौर/ कुछ ऐसा विस्फोट हो, करे जमाना गौर।’
काव्यशास्त्र की विधाओं में आदिकाल से धर्म, नीति, शृंगार वीर आदि विषय दोहा विधा में लिखे गये हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से मुक्त छंद में काव्यशास्त्र की नई परंपरा शुरू हुई, जिसका विरोध भी हुआ इसे ‘केंचुआ छंद’ तक कहा गया। पिछले कुछ समय से दोहा अपनी साहित्यिक उपस्थिति करवाने लगा है।
अशोक अंजुम ने भगत सिंह के सम्पूर्ण जीवन और कृतित्व को दोहा विधा में लिखकर इसकी व्यापकता सिद्ध की है। वहीं रोचकता, तथ्यात्मकता और कथ्य में यह खंडकाव्य खरा उतरता है।
पुस्तक : मैं बंदूकें बो रहा लेखक : अशोक अंजुम प्रकाशक : श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : 160