हौसलों में उड़ान बाकी है : The Dainik Tribune

स्मृति-शेष : सुरेश सपन

हौसलों में उड़ान बाकी है

हौसलों में उड़ान बाकी है

घनश्याम बादल

‘वो शख़्स जिस पर मेरे क़त्ल की सुपारी है,/ उसी पे मेरी हिफ़ाज़त की जिम्मेदारी है।/ दुश्मनों ने गवाही हक में दी,/ दोस्तों का बयान बाकी है।/ पढ़ ही लेता है बच्चा बड़ों की नजर,/ यह न समझो कि वह कुछ समझता नहीं।’

जैसी पंक्तियों के रचनाकार और कोमल गीतों के जनक, धारदार व्यंग्य में सिद्धहस्त और मानव मन के गहरे जानकार कवि, मृदुभाषी, जीवट के धनी और बेहतरीन इंसान सुरेश सपन 16 मई को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

दिल्ली के एक अस्पताल में अंतिम सांस लेने से कुछ दिनों पहले तक भी दोनों टांगें गवां देने के बावजूद सुरेश ‘सपन’ सोशल मीडिया व कवि गोष्ठियों के माध्यम से लगातार सक्रिय थे। इन दिनों वे मानव एवं जीवन दर्शन से संबंधित कविताएं लिख रहे थे, जो बहुत गहरा संदेश देती थी। प्रतिदिन उनकी चार-छह पंक्तियां उनके चाहने वाले लगातार पढ़ते आ रहे थे।

‘कई बीमारियों ने घेर लिया है मुझे,/ एक जाती नहीं कि दूसरी आ जाती है।’

अगले ही दिन फिर उनकी पंक्तियां आई :-

‘हर मुश्किल को, हरा रहा हूं मैं,/ देखिए, मुस्कुरा रहा हूं मैं।’

सपन जी उन रचनाकारों में थे जिन्होंने अपना जीवन संघर्षों से बनाया था और उनकी कविताओं में उनका यह संघर्ष झलकता था। शब्दों पर उनकी पकड़ उन्हें भीड़ से अलग करती थी। मानव मन की गहराइयों में गोते लगाने के लिए उनका ग़ज़ल संग्रह ‘तल में हलचल जारी है’ अपने आप में एक बड़ा अनुभव दे जाता है। उनकी गजलों में अनेक तेवर देखे जा सकते हैं।

कवि सुरेश ‘सपन’ की रचनाओं का मूल स्वर व्यंग्य रहा। उनकी दोहामयी कृति ‘रामकथा’ में सुरेश सपन भक्ति रस में रंगे नजर आए। राम कथा के बारे में एक समीक्षक ने लिखा था ‘रामकथा वस्तुत: शब्दों का तीर्थ और काव्य का मोक्ष है।’

जीवंतता के पर्याय कवि की भावाभिव्यक्ति है—कविता के बारे में सपन कहते थे- ‘कविता जीवन का वह अंग है, जो मनुष्य की कोमलतम भावनाओं को उजागर करता है। सामाजिक विसंगतियों, आसपास के बिखरे वातावरण के अहसास और इनसान के अहसास की खुशबू को चारों तरफ़ बिखेरने का नाम कविता है।’

कवि ‘सपन’ का जीवन बहुत ही संघर्षमय रहा। मधुमेह के कारण उन्होंने आठ बार आपरेशन से अपने शरीर को खुद से अलग होते हुए देखा लेकिन विकट परिस्थितियों में भी वह कभी विचलित नहीं हुए।

वे कहते थे कि अगर हौसला हो तो कोई भी जंग जीती जा सकती है। जिंदगी की ऐसी ही जंग अपने आत्मविश्वास और हौसले से जीतने वाले कवि ‘सपन’ की ये पंक्तियां देखिए :-

ये न कहिए थकान बाक़ी है।/ हौसलों में उड़ान बाक़ी है।

सपन जीवन की दीर्घता में नहीं अपितु उसकी सार्थकता में विश्वास करते थे । दोस्ती पर उनका गहरा यकीन था तभी तो वें कहते थे :-

‘उम्र के साल गिनने छोड़ दिए हमने/ सांसों कि इस कहानी में / अब तो बस यह तलाश रहती है/ दोस्त कितने हैं जिंदगानी में।’

भारी झंझावातों एवं मुश्किलों के बावजूद सपन जी ने कभी भी आशाओं का दामन नहीं छोड़ा उनका कहना था :-

‘आशाओं के दीप जलाने आया हूं/ अंधियारे को राह दिखाने आया हूं/ प्रभु सुमिरन की मधुर प्रार्थना से/ मीठी-मीठी ईद मनाने आया हूं।’

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