परिवेश की शब्दावली को अर्थ विस्तार : The Dainik Tribune

पुस्तक समीक्षा

परिवेश की शब्दावली को अर्थ विस्तार

परिवेश की शब्दावली को अर्थ विस्तार

फूलचंद मानव

भाषा शिल्प और शैली के आधार पर जिन हिंदी रचनाकारों ने पाठकों को आकर्षित किया है, निर्मल वर्मा के बाद मनोज रूपड़ा उनमें खास हस्ताक्षर हैं। बड़ी और श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओं ने इनकी कहानियां एक वर्ग विशेष के पाठकों तक पहुंचाई हैं। कहानी कहना, कुछ दिखाना और महसूस करवाना मनोज रूपड़ा की विशेषता है। पिछले 35-40 वर्षों में खासतौर पर मनोज की कहानियां मात्र कथाएं नहीं, नाटक का अहसास भी प्रदान करती हैं।

मनोज रूपड़ा के प्रस्तुत संग्रह में मात्र पांच कहानियां अलग-अलग धरातल को स्पर्श करती हैं। ईश्वर का द्वंद्व, अनूभूति, आखिरी सीन, दहन या फिर ‘बेबी संजना की मुस्कराहट’ जैसी कहानियों में मनोज मात्र एक कहानीकार नहीं, मंच निदेशक और प्रोड्यूसर होकर भी लिख रहे हैं। इनकी मार्मिकता पाठक के अंदर आंदोलन पैदा करने मे समर्थ है। महानगर, नगर या कस्बा, वीभत्स स्थितियां और बदतर व्यवहार की कुरूपता को दहन की कहानियों ने रूपांतरित करके दिखाया है। मनुष्य मन में हो रही हलचल और बदलती स्थितियों को समाज किस तरह से रिएक्ट करता है, दहन की कहानियां इसकी मिसाल हैं। ‘वे दिन रात काम में लगे रहते थे। कभी रियल्टी शो में, कभी टेलेंट हंट में, कभी डांस परफारमेंस, कभी आडिशन, कभी धारावाहिक की शूटिंग, कभी फिल्मों में कोई साइड रोल उनकी इस हाईपर एक्टिविटी ने कब उनकी भूख, नींद और सहजता को उनसे छीन लिया, यह उन्हें मालूम ही नहीं पड़ा।’ (बेबी संजना की मुस्कुराहट) रूपड़ा के दहन संकलन में शब्द बज रहे हैं। गूंजते हैं और अर्थ विस्तार देने में समर्थ कहलाते हैं। मनोज रूपड़ा का यह संग्रह पढ़े जाने की मांग करता है।

पुस्तक : दहन लेखक : मनोज रूपड़ा प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 199.

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