मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

अलग-थलग पड़े लोगों को जीवन का हौसला

पुस्तक समीक्षा
Advertisement

दलित साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी द्वारा संपादित किताब ‘प्रतिनिधि दलित कहानियां’ में दी गई चौबीस कथाएं इस तथ्य को यकीनी बनाती हैं कि दुरुह और दमनकारी जातिवाद में फंसे निम्न सामाजिक वर्ग के ज्यादातर बाशिंदे ऊंचे तबके के लोगों से सदैव त्रस्त रहे हैं। यद्यपि वर्तमान में संकीर्णता की धुंध काफी हद तक छंट चुकी है, किंतु जात-पांत के आधार पर ज़ोराज़ोरी का सिलसिला अभी भी कायम है।

दलित कहानी ने दलित जीवनक्रम के कई अज्ञात और अनचीन्हे पहलुओं को प्रकट किया है। दयानंद बटोही की कहानी ‘सुरंग’ का नायक पग-पग पर अपमानित होता है, पर हार नहीं मानता। नियति से टकराने पर नायक न केवल पीएच.डी. की उपाधि पाता है, बल्कि व्याख्याता बनकर पढ़ाता भी है। मोहनदास नैमिशराय की कहानी ‘अपना गांव’ के दलित स्त्री-पुरुषों में शायद ही कोई हो, जिसकी अस्मिता से खिलवाड़ न किया गया हो। पीड़ित लोग अंत में तंग होकर ऐसा ‘नया और अपना गांव’ बसाने पर सहमत होते हैं, जहां संपत्ति, संसाधन और आय स्रोतों में गैरबराबरी न हो। प्रह्लाद चन्द्र दास की कहानी ‘लटकी हुई शर्त’ का नायक गंगाराम लांछन और अपमान को धता बताकर परिवार का स्तर ऊंचा उठाता है और आत्मसम्मान के लिए उन ठाकुरों के न्योते पर जीमने नहीं जाता, जहां अपनी पत्तल खुद उठानी पड़ती है।

Advertisement

ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी ‘छतरी’ अपनी योग्यता पर विश्वास प्रकट करने वाली कहानी है। बारिश में दलित बालक जय का छतरी लेकर स्कूल जाना गांव के चौधरी मामराज से बर्दाश्त नहीं होता। दलितों से खार खाने वाले मास्टर ईश्वरचन्द्र जय के कंधे से छतरी लेकर शरारती बच्चों को पीटने लगते हैं। इस क्रम में वह ‘सेकंड हैंड’ छतरी टूट जाती है। वरिष्ठ कथाकार कावेरी की कहानी ‘सुमंगली’ एक मजदूर स्त्री की असह पीड़ा और सतत संघर्ष को चित्रित करती है। सुगनी मात्र 12 वर्ष की थी जब ठेकेदार ने उस पर यौन हिंसा की।

सुशीला टाकभौरे की कहानी ‘सिलिया’ दलित स्त्री दृष्टि की वाहक है। सिलिया यानी शैलजा स्वर्णों की प्रगतिशीलता के आडंबर को जानती है और विवाह करने की बजाय पढ़-लिखकर नई पहचान अर्जित करती है तथा अपनी बिरादरी की भलाई के लिए काम करती है। सूरजपाल चौहान की कहानी ‘बदबू’ की मुख्य पात्र संतोष प्रथम श्रेणी में दसवीं पास है। वह आगे पढ़ना चाहती है, लेकिन बिरादरी में नाक कटने के भय से घरवालों ने उसे पढ़ाई के लिए शहर नहीं भेजा। हेमलता महिश्वर द्वारा लिखित ‘ठहरी हुई नदी’ मेडिकल एजुकेशन में दलित विद्यार्थियों के साथ होने वाले अन्याय की हकीकत बयां करती है। जिस मेडिकल क्षेत्र को अपने विचार और व्यवहार में वैज्ञानिक, तार्किक और समतावादी होना था, वह उतना ही जटिल, अविवेकी और अवैज्ञानिक हो गया।

पुस्तक : प्रतिनिधि दलित कहानियां संपादन : बजरंग बिहारी तिवारी प्रकाशक : राजपाल एंड संस, नयी दिल्ली पृष्ठ : 350 मूल्य : रु. 575.

Advertisement
Show comments