ओमप्रकाश कादयान
‘अंधेरा छंटेगा ज़रूर’ डॉ. आदित्य कुमार गुप्त का नव प्रकाशित काव्य संग्रह है। इससे पूर्व इनकी ‘रीति मंजरी’ तथा ‘चित्रलेखा : एक मूल्यांकन’ शीर्षक से दो पुस्तकें छप चुकी हैं। ‘अंधेरा छंटेगा ज़रूर’ काव्य पुस्तक में आदित्य कुमार गुप्त द्वारा विभिन्न मौकों, परिस्थितियों, विभिन्न मुद्दों व विषयों पर लिखी गई गद्य कविताएं, गीत, मुक्तक संकलित हैं। ये रचनाएं बाहरी संसार की उथल-पुथल, आन्तरिक संसार की हलचलों पर आधारित हैं।
संग्रह की कुछ कविताओं में कवि की दृष्टि मानवीय क्रूरता और सामाजिक विषमताओं पर भी जाती है। कवि ने सूक्ष्म भावों को भी कविता का आधार बनाया है। भाव गाम्भीर्य के साथ-साथ अर्थ-गाम्भीर्य से कविताएं परिपूर्ण हैैैं। ‘अंधेरा छंटेगा ज़रूर’ में आशावादी दृष्टिकोण की कविताएं भी खूब हैं। कुछ कविताओं के परिदृश्यों में कवि ने ज़िंदगी की सटीक, अर्थ-गर्भित व्यंजना की है। कविताओं में जीवन का मर्म प्रतिध्वनित होता है। भाव, भाषा एवं शिल्प का सुन्दर समावेश झलकता प्रतीत होता है। कवि ने प्रकृति को मन से महसूस किया है।
पेड़ बतियाते हैं, हसते हैं।
मुस्कुराते और रोते भी हैं॥
जब पावस ऋतु आती है, प्रकृति के कण-कण में नव ऊर्जा का संचार होता है। अपने किसी की याद आती है। कवि की कलम से पावस का सुन्दर चित्रण किया गया है :-
ऋतु पावस में पुर गए, नदी नाल सब एक।
नैनों के रस धार में, मिली न पिया की टेक॥
भाव, भाषा, शिल्प का सुन्दर समन्वय है इन कविताओं में। कविताएं सरल भाषा में लिखी गई हैं ताकि पाठकों को समझने में सरलता हो।
पुस्तक : अंधेरा छंटेगा ज़रूर कवि : डॉ. आदित्य कुमार गुप्त प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 200.