अरुण नैथानी
कोरोना काल में जब संसाधनों के संकट और अर्थाभाव के चलते कई पत्रिकाओं के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है, साहित्य और संस्कृति की संवाहक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ का रजत जयंती मनाना बेहद सुखद है। प्रतिष्ठित साहित्यकार विद्या निवास मिश्र जैसे संपादक के मार्गदर्शन में श्याम सुंदर जी के प्रयासों से प्रारंभ हुई पत्रिका ने एक-चौथाई सदी के कालखंड में नये आयाम स्थापित किये हैं। इसके विशेषांकों की श्रृंखला तथा तरुणाई में सृजन प्रतिभा उजागर करने के लिये आयोजित लेखन प्रतियोगिताओं ने पत्रिका की प्रतिष्ठा को विस्तार ही दिया है।
पत्रिका ने सदैव व्यावसायिक हितों के बजाय साहित्य को समृद्ध करने का ही प्रयास किया। जैसा कि संस्थापक संपादक का संकल्प था कि पत्रिका जीवन को संवारने वाली और हार कर उठने वाले की पत्रिका होगी। उस ध्येय वाक्य को पत्रिका ने चरितार्थ भी किया है।
पत्रिका के रजत जयंती विशेषांक में साहित्यिक परिदृश्य के चर्चित रचनाकारों की विभिन्न विधाओं की रचनाओं को अंक में स्थान दिया गया है। समीक्ष्य अंक में संस्थापक संपादक विद्या निवास मिश्र का सांस्कृतिक चेतना जगाता लेख भी संकलित है। कुल 290 पृष्ठों के इस विशेषांक में प्रतिस्मृति में फणीश्वरनाथ रेणु, निर्मल वर्मा का यात्रा वृत्तांत ‘हूरों, हवाओं का नगर’, नरेंद्र कोहली के संस्मरण, विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर, हिमांशु जोशी, नासिरा शर्मा, गिरिराज किशोर आदि की कहानियां, चर्चित रचनाकारों के व्यंग्य और प्रतिष्ठित कविताएं संकलित हैं।
कुल मिलाकर पत्रिका ने देश के विभिन्न अंचलों में साधनारत साहित्यकारों को रजत जयंती के मौके पर एक सार्थक मंच उपलब्ध कराया है। साथ ही नये पाठकों को जोड़ने का सार्थक उपक्रम किया है।
पत्रिका : साहित्य अमृत संपादक : लक्ष्मी शंकर वाजपेयी प्रकाशक : 4/19, आसफ अली रोड, दिल्ली पृष्ठ: 290 मूल्य : रु. 100.