कबीर की परंपरा का करुणामय विस्तार
माधव हाड़ा द्वारा संपादित पुस्तक ‘कालजयी कवि और उनका काव्य : दादु दयाल’ मध्यकाल के प्रख्यात संत दादु दयाल के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध कराती है।
दादु दयाल की गणना ज्ञानमार्गी सन्तों और भक्तिधारा के प्रमुख संत कवियों में की जाती है। वे इस धारा के पुरोधा कबीर की परंपरा के पुरस्सरकों में से हैं, परंतु उनसे बहुत भिन्न हैं। दादु दयाल अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए न तो हाथ में लाठी लेकर निकलते हैं, न ही डांट-डपट का सहारा लेते हैं। उनका स्वर दया और निर्वैरता का है। दादु दयाल निरक्षर नहीं थे, बल्कि धर्मग्रंथों के ज्ञाता थे, जिनके ज्ञान को उन्होंने अपने अर्जित और आत्मानुभूत ज्ञान से समन्वित कर अपनी वाणी में प्रस्तुत किया है। उन्हें अपनी भाषा को खदेड़ना नहीं पड़ता; उनकी भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और अर्थगंभीर है, जो सीधे श्रवणकर्ता तक पहुंचती है।
कबीर कबीर (महान) बने रहेंगे, परंतु दूसरों की महानता को भी उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
दादु दयाल का जन्म सन 1544 में गुजरात के नगर अहमदाबाद में हुआ था। यह बहुमान्य है। वे जाति से धुनिया थे। कुछ का कहना है कि वे नागर ब्राह्मण थे, परंतु उनका धुनिया होना ही अधिक मान्य है।
दादु का बाल्यकाल सांभर में बीता। बारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने जयपुर के समीप आमेर को अपनी साधना-स्थली बनाया। आमेर में साधु-संतों का आना-जाना प्रायः लगा रहता था। इन समागमों में होने वाली चर्चाओं के सार स्वरूप प्राप्त ज्ञान दादु दयाल के चिंतन का आधार बना। उनकी वाणी गार्हस्थ्यों और साधुओं में समान रूप से लोकप्रिय हुई। दादु अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को सहज ही प्रभावित कर लेते थे, इसीलिए उनके अनुयायियों की संख्या निरंतर बढ़ती गई, इनमें से कई उनके शिष्य भी बने। उनके नाम से प्रचलित ‘दादु पंथ’ का प्रभाव समस्त उत्तरी भारत, विशेषकर राजस्थान, गुजरात तथा निकटवर्ती क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
दादु दयाल की वाणी का संकलन उनके शिष्य संतदास और जगन्नाथ दास ने किया, जबकि रज्जब ने इसे व्यवस्थित स्वरूप दिया।
दादु दयाल का निधन 58 वर्ष की अवस्था में सन 1603 को हुआ था।
आलोच्य पुस्तक के संपादक ने प्रारंभ में एक विस्तृत भूमिका दी है, जिसमें दादु दयाल के जीवन, व्यक्ति और व्यक्तित्व तथा कृतित्व के संबंध में सम्यक् जानकारी प्रस्तुत की गई है। दूसरे भाग में दादु वाणी का चयन है। इसमें साखियों और शबदों (दोहे और गेय पदों) का संकलन है, जो हमें दादु के सामाजिक सरोकार और भक्ति भावना से भलीभांति अवगत करवाता है। लेखक-संपादक अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल रहे हैं।
पुस्तक : कालजयी कवि और उनका काव्य : दादु दयाल संपादक : माधव हाड़ा प्रकाशक : राजपाल एण्ड संस, नयी दिल्ली पृष्ठ : 121 मूल्य : रु. 199.