रतन चंद ‘रत्नेश’
कहानी, लघु कहानी और लघुकथा का मेल है डॉ. अरविंद ठाकुर, राजेंद्र पालमपुरी और कल्याण जग्गी द्वारा संपादित पुस्तक ‘हिमाचल की उत्कृष्ट कहानियां’। संग्रह की कुछ कहानियां वाकई तारीफे-काबिल हैं और इनमें प्रभावित करती हैं राजेंद्र राजन की कहानी ‘प्रेतयोनि’ और अरविंद ठाकुर की ‘जिंदगी है झुनझुना। ‘प्रेतयोनि’ प्रदेश की रूढ़िवादी परंपरा पर कटाक्ष करते हुए व्याप्त ढकोसले पर प्रहार करती है।
‘जिंदगी है झुनझुना’ में अमीर-गरीब दोनों तरह के लोगों की त्रासद परिस्थितियां अपने-अपने ढंग से उभरी हैं। इनके अलावा अशोक दर्द की ‘मिसकॉल’ संदेह की परिणति व उसका दुखांत और जयनारायण कश्यप का ‘पहाड़ पिघलता रहा’ देह-व्यापार में जबरन धकेली जा रही युवतियों की ओर इशारा करता है। संग्रह की लगभग सभी कहानियां हिमाचल में व्याप्त सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियां तथा यहां के लोकाचार का अक्स लिए है। कल्याण जग्गी का ‘दगड़ू अभी जिंदा है’ एक जीवित व्यक्ति को जबरन मृत घोषित किए जाने के बाद पैदा हुए हालात की व्यंग्यात्मक शैली है। ‘मां चुप हो जाओ न’ (गंगा राम राजी) कोरोना में मारे गए शख्स की पत्नी और पुत्र के इर्द-गिर्द घूमती है जबकि ‘अनामिका’ मनोज कुमार शिव की रोमांटिक कहानी है। पौंग बांध विस्थापितों का दर्द ‘अल्लाहदित्ता उर्फ देवीदित्ता’ (अजय पाराशर) में बयां हुआ और ‘वक्त बदलता है’ (भूपिन्द्र जसरोटिया) गरीबी झेल रहे मूर्तिकार धनु की बदलती किस्मत का चित्रण है।
इसी तरह अच्छी खासी कीमत में अपनी पुश्तैनी जमीन बेचने के बाद उपजी मन की व्यथा राजीव कुमार त्रिगर्ती की ‘निरीह प्रश्नों के उत्तर’ में तलाशती है। कोहरा (सुशील कुमार फुल्ल), मैं लुट गई (सुदर्शन भाटिया), उस लाठी में आवाज थी (कुलदीप शर्मा), बंदूक और बांसुरी (हंसराज भारती), सुलेखा (अर्जुन कनौजिया), नानकी (शेरसिंह) भी प्रभावित करती हैं। संग्रह में कृष्णचंद्र महादेविया की तीन लघुकथाएं भी शामिल हैं।
पुस्तक : हिमाचल की उत्कृष्ट कहानियां संपादक : डॉ. अरविन्द ठाकुर, राजेन्द्र पालमपुरी, कल्याण जग्गी प्रकाशक : इन्द्रप्रस्थ प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 240 मूल्य : रु. 695.