अशोक गौतम
बाल-मन को साहित्य के केंद्र में रखकर बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु आज प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य रचा जा रहा है। बाल साहित्य जहां एक ओर बच्चों का मनोरंजन करता है वहीं दूसरी ओर उनमें पढ़ने, सोचने-समझने, तर्क-वितर्क की चेतना विकसित करने में सहायक होता है।
सही मायनों में बच्चों के लिए बेहतर लिखना बच्चों का खेल भी नहीं। कोई माने या न, पर बाल मन को समझना और उसके बाद पैदा हुई उस समझ से बच्चों की समझ के अनुरूप बच्चों को समझ आने वाले अंदाज में लिखना टेढ़ी खीर है। इसी टेढ़ी खीर को मीठी खीर करने की एक कोशिश है डॉ. इंजीनियर आलोक सक्सेना का बाल कहानियों का संग्रह ‘कासिम चाचा’।
‘कासिम चाचा’ डॉ. इंजीनियर आलोक सक्सेना का बाल कहानियों और हास्य कथाओं का संग्रह है, जिसमें बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखते 21 बाल कहानियों और 13 हास्य कथाओं को शामिल किया है। कहानीकार मौलिक शैली के चलते इन कहानियों और हास्य कथाओं के माध्यम से बच्चों से जुड़ने में सफल रहा है। या कि दूसरे शब्दों में कहें तो जिस उद्देश्य को लेकर कहानियां और हास्य कथाएं कहानीकार ने लिखी हैं, वे अपनी अनूठी भाषा शैली के चलते बच्चों से संवाद करने में काफी सफल हैं। बाल मन के हर कोने को छूने की ताकत इन कहानियों और हास्य कथाओं में साफ झलकती है।
‘कासिम चाचा’ में कहानीकार ने अपनी बात बच्चों से कहने करने के लिए वर्णनात्मक, विवरणात्मक, संवाद शैली का सहारा लिया है। कहानियों, हास्य कथाओं की भाषा की बात की जाए तो वह सहजता के साथ-साथ सकारात्मकता, संस्कारों से गहरे रूप में जुड़ी है। ‘कासिम चाचा’ संग्रह की हर कहानी कहानीकार द्वारा मन लगाकर सरल और सहज अंदाज में लिखी गई है।
कहानी भाग में ‘कासिम चाचा’, ‘दोस्ताना,’ ‘ज्ञान बांटते ढोलू भोलू,’ ‘ठगी का रहस्य’ कथाशिल्प की दृष्टि से बेहतर कहानियां बन पड़ी हैं। वही हास्य कथा अनुभाग में ‘आदिल मियां और सलीम संवाद,’ ‘होली पर हुआ महामूर्खाधिराज का चयन’, ‘हंसी पर टैक्स और हास्य कथा सम्मेलन,’ ‘शॉपिंग माल में राय साहब की डिमांड’ बेहतर हास्य कथाएं हैं। हास्य कथाओं के शीर्षक छोटे होते तो और भी प्रभावशाली लगते। पर हो सकता है इसके पीछे कहानीकार का कोई विशेष मंतव्य रहा हो।
पुस्तक : कासिम चाचा रचनाकार : डॉ. आलोक सक्सेना प्रकाशक : अयन प्रकाशक, नयी दिल्ली पृष्ठ : 175 मूल्य : रु.350.