शशि सिंघल
‘फोटो फ्रेम में कैद हंसी’ देखकर मेरे जहन में विचार कौंधा कि वास्तव में आज आपाधापी भरे जीवन में हंसी फोटोफ्रेम मे कैद होकर ही तो रह गयी है। फोटो खिंचवाते समय हर किसी को यह कहते हुए देखा जाता है कि बोलो ची…। इसका मतलब है कि कम से कम फोटो में तो खुलकर हंस दो ताकि फोटो अच्छी आए। लेकिन यहां बात करें इस पुस्तक की तो पुस्तक के फोटोफ्रेम में स्त्रियों के जीवन के विविध रंगों को कहानियों के माध्यम से कैद किया है।
लेखिका सुमन बाजपेयी के शब्दों में स्त्री जीवन एक कैनवास है, उसके जीवन से जुड़े रिश्ते उस पर मनचाहे रंग उड़ेलते रहते हैं और स्त्री विभिन्न भूमिकाएं निभाते हुए उन रंगों का संयोजन करने में अपनी जिंदगी गुजार देती है। वह दूसरों के लिए जीते-जीते अपने जीवन रूपी कैनवास पर अपने पसंदीदा रंग उड़ेलना ही नहीं बल्कि खुलकर हंसना भी भूल जाती है।
पुस्तक में शामिल 16 कहानियां स्त्री जीवन के विविध पहलुओं- प्रेम वेदना, खुशी, खिलखिलाहट, संघर्ष, महत्वाकांक्षा की तस्वीर है। ‘दो रंग की गोटियां’ कहानी पुरुष के छद्म स्वभाव से छली गई स्त्रियों की दास्तान है। ‘प्रतिकार’ कहानी में स्त्री की वेदना चीख-चीख कर सवाल करती है कि झगड़ा जायदाद का हो या व्यापार का या फिर आपसी मतभेद का, आखिर औरत क्यों बीच में आ जाती है? बदले की भावना में लड़कियों को उठाने व दुराचार करने जैसा घृणित काम करने का खेल बंद क्यों नहीं होता?
कहानी में सिर्फ सवाल ही नहीं बल्कि लोगों को मैसेज है कि वे ऐसी घृणित सोच को बदलें। ‘सुरक्षा कवच’ बाप-बेटी के मजबूत रिश्ते को बयां करती है तो ‘कटघरे में प्यार’ ने प्यार की भाषा समझाने वाले को ही कटघरे में ला खड़ा किया है। फोटो फ्रेम में कैद हंसी अब नहीं छलने देगी, लौट जाओ सुमित्रा, सपनों के पंख, क्रिस्टल क्लियर, स्मृति के हिंडोले, पिघलती सिल्लियां, सन्नाटा डॉट कॉम, सफर के वे कुछ घंटे, लीव विद पे, छोटे शहरों में और ‘रुक जा…’ आदि कहानियों में स्त्री जीवन के चटक, फीके, धुंधले एक-दूसरे में घुले-मिले अनगिनत रंग छितराए हुए हैं। कहानियों में उलझन है तो उसका समाधान भी है।
सुमन बाजपेयी ने स्त्री जीवन से जुड़े कुछ ऐसे विषय भी उठाए हैं जिन्हें आज की स्त्री भी खुलकर कहने की हिम्मत नहीं कर पाती। यदि वह कुछ कहने का साहस करती भी है तो उसे आसानी से फेमिनिस्ट कहकर उस पर टीका-टिप्पणी की जाती है। कहानियां स्त्री के साहसिक चरित्र को बयां करती हैं और पूरे तर्क के साथ उनकी सोच को जस्टिफाई करने की कोशिश भी करती हैं। रिश्तों की गुत्थियों को नये परिप्रेक्ष्य में देखने के लिए विवश करती हैं ताकि समाज अपने रूढ़िगत दायरे से बाहर आ सके।
पुस्तक : फोटोफ्रेम में कैद हंसी लेखिका : सुमन बाजपेयी प्रकाशक : फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन, राज. पृष्ठ : 163 मूल्य : रु. 160.