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साग की कटोरी

पंजाबी कहानी
चित्रांकन संदीप जोशी
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जब उसने मुझसे अपने बेटे को कैनेडा लाने के ढंग के विषय में पूछा तो मैंने अपनी समझ के अनुसार बताया कि एजेंट पांच लाख रुपया लेते हैं और नकली पासपोर्ट पर लोगों को कैनेडा पहुंचा देते हैं। बाकी, जैसा कि तुमने बताया है कि तुम्हारी लड़की के कोई औलाद नहीं है, वह अपने भाई का एक बच्चा गोद लेकर उसके बच्चे को कैनेडा में बुला सकती है। प्रतिप्रश्न में उसने गोद लेने का तरीका पूछा।

जब वह मुझे एलिवेटर में मिली तो उसके हाथ में दो थैले थे, जिनमें ताज़ा साग, मूलियां और हरे प्याज थे। उसकी आयु बेशक साठ से ऊपर की रही होगी, पर सुर्ख दिपदिपाता चेहरा और सुगठित शरीर देखकर वह नौजवान लड़कियों से भी तगड़ी प्रतीत होती थी। मुझे यह अंदाज़ लगाने में देर न लगी कि यह माई किसी फॉर्म में दिहाड़ी करके लौटी थी और अक्सर पंजाबी स्त्री-पुरुष जो फॉर्मों में सेब तोड़ने या प्याज़-मूलियां उखाड़ने का काम करते हैं, वे शाम को लौटते समय अपने खाने के लिए सब्जियों के झोले भर लाते हैं और मालिक बुरा नहीं मानते। अपितु कई मालिक तो अपने वर्करों को स्वयं ही घरों के लिए सब्ज़ी आदि ले जाने को कह देते हैं। कई पंजाबी तो वर्षभर के टमाटर या हरी मिर्चें फ्रीजर्ज़ में सर्दियों के लिए फ्रीज़ कर लेते हैं।

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कैनेडा में फॉर्म की ताज़ा सब्ज़ी का अपना ही एक स्वाद और नशा है। अब तो पंजाबी घरों में लोग सालभर का साग पकाकर फ्रीज़ कर लेते हैं। मालिक दस डॉलर की बकट बेचते हैं, पर साग खुद तोड़ना पड़ता है और फॉल के दिनों में टोरंटो के आसपास सरसों के खेतों में साग तोड़ने वाले पंजाबियों की भरमार लग जाती है।

मेरा मन कर रहा था कि इस माई से कहूं कि खेतों में से तोड़ा साग मुझे दे दे, पर मैं साग कैसे पकाऊंगा, इस बारे में सोचकर मैंने मुंह नहीं खोला। मैं उसके साथ बात साझी करने के लिए सोच ही रहा था कि उसने खुद ही मुझसे पूछ लिया, ‘आप इसी बिल्डिंग में रहते हैं?’

मैंने ‘हां’ में उत्तर देते हुए कहा, ‘मैं सातवें फ्लोर पर 701 नंबर अपार्टमेंट में रहता हूं।’

‘मैं भी सातवें फ्लोर पर 719 नंबर में रहती हूं। मेरे साथ मेरी बेटी रहती है और घरवाला भी। बेटा अभी लुधियाना के करीब एक गांव में रहता है। उसको इमिग्रेशन नहीं मिली।’

अभी उसने बात पूरी नहीं की थी कि सातवीं मंज़िल आ गई और हम एलिवेटर में से बाहर आ गए। बात को आगे बढ़ाते हुए उसने मुझसे पूछा, ‘देखने में तो तुम पढ़े-लिखे लगते हो। मुझे एक चिट्ठी पढ़वानी है, पढ़ दोगे?’

‘ज़रूर पढ़ देंगे।’ पर साथ ही मैं अपने मन की बात को रोक न सका, ‘जब से इंडिया से इधर आया हूं, सरसों का साग नहीं खाया। अगर कहीं साग की एक कटोरी मिल जाए तो पंजाब याद आ जाएगा।’

‘लो, यह तुमने कौन-सी बात कही। मैं साग बनाकर लाऊंगी तेरे लिए, पर इतवार को। साथ ही अंग्रेजी की चिट्ठियां भी।’

‘ठीक है, मैं चिट्ठियां पढ़कर सब कुछ बता दूंगा।’ और हम अपने-अपने अपार्टमेंट्स की ओर चले गए।

मुझे कैनेडा में आए यद्यपि तीन वर्ष हो गए थे, पर मुझे कहीं काम नहीं मिल सका था। दरअसल, मैं पढ़ा-लिखा था और इंडिया में बढ़िया और आरामदेह नौकरी करके आया था। यहां कैनेडा में मुझसे सख्त और भारी काम नहीं होता था। मुझे जहां काम मिलता था, वहां काम वाले ही मुझे धीमा काम करने के कारण हटा देते या मैं स्वयं ही मुश्किल काम न कर सकने के कारण छोड़ देता। मेरी पढ़ाई के हिसाब से मुझे काम मिलता नहीं था। कैनेडा वाले इंडिया की पढ़ाई को मानते नहीं थे। इसलिए, अक्सर मैं उदास रहता और इंडिया लौट जाने की सोचता रहता था।

इतवार को मेरे डोर पर दस्तक हुई। जब मैंने दरवाज़ा खोला तो बाहर वही एलिवेटर वाली माई साग की बड़ी-सी कटोरी लिए खड़ी थी। मैंने उसे अन्दर आने के लिए कहा। उसने अन्दर आ कर साग की कटोरी डॉयनिंग टेबल पर रख दी। साथ ही, पॉलीथीन में लपेटी मक्की की रोटियां भी टेबल पर रख दीं।

हम डॉयनिंग टेबल के पास ही कुर्सियों पर बैठ गए और उसने मेरे सामने अंग्रेजी में लिखीं कई चिट्ठियां रख दीं जो इमिग्रेशन विभाग की ओर से आई थीं। ये पत्र इमिग्रेशन विभाग ने उसको ही लिखे थे और पत्रों से ही मुझे पता लगा कि उसका नाम बलवंत कौर था। इन पत्रों से यह पता चलता था कि उसके बेटे को इमिग्रेशन देने का केस रद्द कर दिया गया था क्योंकि उसकी उम्र 21 वर्ष से ऊपर थी, वह विवाहित था और उसके बच्चे भी थी। जब यह सारी बात बलवंत कौर को बताई तो उसकी आंखें भर आईं। उसके दिल में बेटे के लिए बड़ा प्यार था और वह किसी भी तरकीब से बेटे को कैनेडा में लाना चाहती थी। मैंने उसे बताया कि कैनेडा के इमिग्रेशन कानून के अनुसार वह नहीं आ सकता।

बलवंत कौर ने कोई उपाय खोजने के लिए मुझसे कहा। उसने यह भी बताया कि लुधियाना के करीब गांव में उनके पास ज़मीन-जायदाद भी अच्छी है और वह हर महीने अपने बेटे को दस हज़ार रुपये शराब पीने के लिए भेजा करती है। उसने यह भी बताया कि उसका बेटा शराब पीने का आदी है और उससे अपने बेटे का बिछोह सहन नहीं होता। वह उड़कर बेटे के पास पहुंच जाना चाहती थी या किसी भी तरीके से उसको कैनेडा ले आना चाहती थी। उसने बताया कि बेटे की खातिर वह यहां फॉर्म में नौ डॉलर प्रति घंटा के हिसाब से काम करती है। सप्ताह में छह दिन 60 घंटे काम करती है और पांच सौ डॉलर से अधिक का चैक हर सप्ताह घर लाती है। सर्दियों में जब फॉर्म बन्द हो जाते थे तो उसको बेरोज़गारी की इंश्योरेंस मिलती थी और आर्थिक तौर पर वह ठीकठाक थी। जब उसने मुझसे पूछा कि मैं क्या करता हूं और कितने पैसे कमाता हूं तो वह यह सुनकर हैरान रह गई कि पढ़ा-लिखा होने के बावजूद मैं पांच डॉलर प्रति घंटा पर सिक्योरिटी की नौकरी करता हूं। उसने गिला-सा करते हुए कहा, ‘तू किधर का पढ़ा-लिखा है फिर। मैं अनपढ़ होकर तेरे से ज्यादा पैसे कमा रही हूं।’

जब उसने मुझसे अपने बेटे को कैनेडा लाने के ढंग के विषय में पूछा तो मैंने अपनी समझ के अनुसार बताया कि एजेंट पांच लाख रुपया लेते हैं और नकली पासपोर्ट पर लोगों को कैनेडा पहुंचा देते हैं। बाकी, जैसा कि तुमने बताया है कि तुम्हारी लड़की के कोई औलाद नहीं है, वह अपने भाई का एक बच्चा गोद लेकर उसके बच्चे को कैनेडा में बुला सकती है। प्रतिप्रश्न में उसने गोद लेने का तरीका पूछा।

मैंने बताया कि उसको हिंदुस्तान जाकर बच्चा उसके असली मां-बाप की सहमति से गोद लेना होगा और फिर 14 साल की उम्र से पहले-पहले बच्चा स्पांसर होकर कैनेडा पहुंचना चाहिए। यदि वह स्वयं नहीं जा सकती तो उसके द्वारा किसी को पॉवर ऑफ़ एटार्नी भेज कर भी बच्चा गोद लिया जा सकता है। पॉवर ऑफ़ एटार्नी किसी भी वकील से बनवाई जा सकती है। उसने बताया कि उसे मेरी बताई दोनों बातें ठीक लगी हैं। वह अपनी बेटी के साथ सलाह करके दुबारा मेरे पास आएगी। इतना कहकर वह चली गई। उसके चले जाने के बाद मैंने साग के साथ रोटियां खाईं। उसने साग में मक्खन डाल रखा था और साग और मक्की की रोटियां मुझे बहुत स्वाद लगी थीं। एक तरह से वह साग की एक कटोरी के बदल मेरे से सलाह-मशवरा कर गई थी।

कुछ दिन बाद वह अपनी लड़की को संग लेकर आई। लड़की बहुत बढ़िया अंग्रेजी बोलती थी और बड़ी तीखी लग रही थी। देखने में भी वह कैनेडियन स्त्रियों की तरह लगती थी। उसने कुरेद-कुरेद कर बच्चा गोद लेने के बारे में मुझसे प्रश्न किए और ऐसे एजेंटों की जानकारी भी मांगी जो पैसा लेकर व्यक्ति को कैनेडा मंगवाते थे। उसने स्वयं ही बताया कि उसका अपने पति से डायवोर्स का केस चल रहा था और शीघ्र ही उसको तलाक मिलने वाला था। तलाक लेने की उसने खास वजह नहीं बताई थी। उसने कैनेडियन स्टाइल में सिर के बाल कटवा रखे थे और ज़ीन पहन रखी थी। उसकी उम्र 30 के करीब होगी और उसका अपना कोई बच्चा नहीं था।

सारी बातचीत के बाद यह कयास लगाना कठिन नहीं था कि वह भी मां की तरह अपने भाई को कैनेडा में देखना चाहती थी। मैंने उससे पूछा कि तुम इतनी बढ़िया इंग्लिश बोलती हो, फिर तुम्हारी मां ने अंग्रेजी की चिट्ठियां मुझसे क्यों पढ़वाईं। उसने तुरन्त उत्तर दिया कि उसको इंग्लिश बोलनी और समझनी तो खूब आती थी, पर इंग्लिश लिखना-पढ़ना उसे अधिक नहीं आता था। मेरा मन हो रहा था कि उस लड़की से तलाक लेने का कारण पूछूं पर बात आरंभ करने का कोई ढंग नहीं मिल रहा था।

फिर वे दोनों चली गईं। फिर एक लम्बे समय तक कोई मुलाकात नहीं हुई। कभी-कभार एलिवेटर में कुछ पल की मुलाकात हो जाती। मुलाकात बहुत संक्षिप्त और भेदभरी होती। मैं इसे ज़िन्दगी का एक हिस्सा ही समझता और इस संबंध में गहरे न सोचता।

फिर पता चला कि उन्होंने यह अपार्टमेंट छोड़ दिया था और माल्टन में मकान खरीद कर मां-बेटी रहने लगे थे। अब मुझे उनका नया फोन नंबर भी नहीं पता था और न ही कभी उनकी ओर से कोई फोन आया था। एलिवेटर में मिलने का अवसर तो अब न के बराबर था क्योंकि वे बिल्डिंग ही छोड़ गए थे। धीरे-धीरे मैं भी उन्हें भूल गया।

करीब दो वर्ष से अधिक का समय हो गया था। मैं किसी मित्र को रिसीव करने के लिए पियर्सन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के वेटिंग लॉन्ज में बैठा था और उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। फ्लाइट लैंड कर चुकी थी, पर मुसाफ़िर अभी बाहर आने शुरू नहीं हुए थे। इमिग्रेशन और कस्टम्ज़ में उलझे हुए थे और कुछ अपने सामान की प्रतीक्षा कर रहे थे।

मेरा मित्र तो अभी नहीं आया था, पर विवाह वाले वस्त्रों में एक जवान स्त्री सामने से आ रही थी जिसने हाथों में लाल चूड़ा पहन रखा था और माथे पर टीका लगा हुआ था। पैरों में चांदी की पायल पहन रखी थीं। उसके पहरावे से उसके विवाहित होने के सभी आसार नज़र आ रहे थे। उसके संग करीब 35 वर्षीय एक आदमी था जो दुबला-पतला था। उसने थ्री-पीस सूट पहन रखा था। उसकी चाल से पता चलता था कि वह शराबी था और उसने उस वक्त भी अच्छी-खासी पी रखी थी और वह लड़खड़ा रहा था। वह उसे अपनी बांह का सहारा देकर बाहर ला रही थी और एक हाथ से सामान वाली ट्राली धकेल रही थी। जब वह मेरे करीब आई तो मैंने उसे पहचान लिया। यह तो उसी साग वाली माई की लड़की थी जिसने कभी अपने पति से तलाक की बात मुझसे कही थी। जब उसकी और मेरी आंखें परस्पर मिलीं तो उसने मुंह फिराकर यह दर्शाने की कोशिश की कि वह मुझे नहीं जानती। फिर भी, जब वह मेरे पास से गुज़रने लगी तो मैंने पूछ ही लिया, ‘इंडिया से आ रहे हो?’

उसने शर्मिन्दा-सा होकर कहा, ‘हां जी, मीट मॉय हसबैंड...।’

मैंने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाया, पर उसने हाथ आगे न किया। शायद, अधिक नशे में था या उसको इस बारे में कोई ज्ञान नहीं था। अभी हम एक-दूसरे की ओर देख ही रहे थे कि साग की एक कटोरी देकर कैनेडियन इमिग्रेशन की जानकारी लेने वाली माई भी आ गई जो इतने वेग में थी कि उसने दौड़कर उस व्यक्ति को अपनी बांहों में कस लिया और उसका माथा चूमते हुए बोली, ‘शुक्र है... आ गया मेरा बेटा। कितने सालों से मैं तेरा राह देख रही थी। मेरी तो आंखें ही पक गई थीं।’

मैं हतप्रभ था। कैनेडियन इमिग्रेशन लेने के लिए लोग कैसे-कैसे हथकंडे अपनाते हैं। मैं अभी यह सोच ही रहा था कि तभी मुझे मेरा मित्र अपना ब्रीफकेस उठाये बाहर आता दिखाई दिया जिसे रिसीव करने मैं एयरपोर्ट आया था।

अनुवाद : सुभाष नीरव

 

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