गोविन्द भारद्वाज
देश की सीमा के पास हिमालय की गोद में एक छोटा सा गांव था। गांव का नाम था बहादुरपुर। गांव जितना सुंदर था, उतने ही सुंदर वहां के लोग थे। इतना ही नहीं बहादुरपुर गांव के लोग बहादुर भी थे। उस गांव में कोई घर ऐसा नहीं था, जिसका बेटा या पोता फौज में नहीं हो। एक तो सरहद से सटे गांव और दूसरा ज्यादातर घरों से कोई न कोई फौज में, इन कारणों से भी उनमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। बहादुरपुर गांव में एक घर ऐसा था, जिसके घर में कोई फौजी जवान नहीं था। वह था मंगलू का घर। मंगलू बारह साल का था। उसके परिवार में सदस्यों का कद बहुत छोटा था। लम्बाई न होने के कारण वे फ़ौज में भर्ती नहीं हो पाते थे। मंगलू को इस बात का बहुत दुःख था कि उसका परिवार देश सेवा में काम नहीं आ सकता था। वह प्रतिदिन पहाड़ों पर भेड़-बकरियां चराने जाया करता था। गांव के बच्चे उसे बौना मंगलू कहकर चिढ़ाते थे। इससे वह दुखी रहता।
एक बार कुछ आतंकी सीमा पार करके बहादुरपुर के जंगलों में छुप गये थे। जब यह सूचना सुरक्षाबलों को मिली तो उन्होंने वहां खोजबीन शुरू कर दी। इधर-उधर काफी ढूंढ़ने के बाद भी उनका कोई सुराग नहीं मिला। आतंकियों की ख़बर सुनकर बहादुरपुर के लोग दहशत में थे। उन्हें डर था कि कहीं आंतकवादी उनके गांव या देश के किसी हिस्से में हमला करके नुकसान न पहुंचा दें।
एक दिन मंगलू अपनी भेड़-बकरियों को एक ऊंची चोटी पर चरा रहा था। बादलों के दल भी उस चोटी पर उतरे हुए थे। घने बादलों के बीच मौसम तो सुहाना था, साथ ही कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था। पूरा नजारा धुंधला-धुंधला सा था। उस समय मंगलू एक गुफा के बाहर बैैैठा खेेल रहा था। एकाएक उसे उस गुफ़ा के अंदर से कुछ खुसुर-फुसुर सुनाई दी।
मंगलू ने सोचा, ’इतनी ऊंचाई और ठंडे इलाके में इस रहस्यमयी गुफ़ा में कौन हो सकता है।’ मंगलू कद का भले छोटा हो, पर बहादुर था। वह उस खुसुर-फुसुर का रहस्य जानने के लिए गुफा में चला गया। छोटे कद का होने के कारण उसे अंदर जाने में कोई परेशानी नहीं हुई।
गुफा के अंदर जाने के बाद वह तो बेहद हैरत में पड़ गया। जो दृश्य उसने वहां देखा, इससे पहले ऐसे दृश्यों और कारनामों के बारे में उसने केवल सुना ही था, देखा नहीं था। दस-पंद्रह लोग हथियारों के साथ बैठे कोई योजना बना रहे थे। उनके हाथों में छोटी-छोटी टाॅर्च थीं। एक बड़े से कागज को फैलाकर एक आदमी उनको कुछ समझा रहा था। मंगलू समझ गया कि ये वही आतंकी हैं, जिनको पकड़ने के लिए सेना ने सर्च ऑपरेशन चला रखा है। वह छोटे-छोटे कदमों से जैसे-तैसे गुफ़ा से बाहर आ गया। फिर वह छोटी-बड़ी पहाड़ियों को पार करता हुआ सुरक्षाबलों के कैंप में पहुंच गया। उसने वहां हांफते हुए सुुुरक्षा अधिकारियों को सारी बात बता दी।
सुरक्षाबलों ने मंगलू को साथ लिया और अपनी एक टुकड़ी लेकर उस गुफ़ा के पास पहुंच गये। अपनी योजना के अनुसार उन्होंने आतंकवादियों पर हमला कर दिया। अचानक हमले से आंतकवादी घबरा गये। वे कुछ सोच पाते इससे पहले उन सभी को सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया। इसके बाद सुरक्षा बलों को वहां काफी मात्रा में गोला-बारूद और हथियार मिले। उनके पास देश के बड़े-बड़े शहरों के नक्शे थे। इससे ये पता चला कि वे देश के नगरों-महानगरों को निशाना बनाकर भारी नुक़सान पहुंचाना चाहते थे।
सुरक्षाबलों को एक बड़ी कामयाबी मिलने से देश को बचाया जा सका। सुरक्षाबल के कमांडर ने मंगलू की बहादुरी की सराहना की। उन्होंने अपने ऑपरेशन की सफ़लता का श्रेय मंगलू की सूझबूझ व साहस को दिया।
बहादुरपुर गांव में ही नहीं बल्कि पूरे देश में मंगलू की हिम्मत के चर्चे थे। उसके गांव के लोग भी मंगलू की बहादुरी के दीवाने हो गये। गांव के बच्चे उसे बौना मंगलू कहने के बजाय बहादुर मंगलू कहने लगे थे। इस घटना के बाद प्रशासन ने मंगलू का नाम वीरता पुरस्कार के लिए सरकार को भेेज दिया गया। मंगलू अब समझ गया कि कद से कुछ नहीं होता, होता तो सिर्फ़ साहस और हिम्मत से है। उसे देश के काम आने पर अपने छोटे कद पर गर्व था।