
मनमोहन सहगल
हरियाणा के साहित्यकार लाजपत राय गर्ग का नवीनतम और प्रेरक उपन्यास ‘अनूठी पहल’ नई सोच को उजागर कर रहा है। गर्ग का यह उपन्यास सम्पूर्ण देहदान द्वारा मृत्यु उपरांत शरीर के जो भी अंग दूसरे के लिए उपयोगी हो सकते हैं, उनके प्रत्यारोपण तथा मेडिकल की पढ़ाई के प्रयोग हेतु मृत शरीर उपलब्ध करवाने की एक महान योजना की सजगता को मानव-चिंतन का विषय बना रहा है। प्रायः देखने में आता है कि मृत्यु के बाद शरीर का दाह-संस्कार करते हुए हम नेत्रों, गुर्दों, दिल तथा शरीर की अनेक हड्डियों को बेकार जलाकर राख कर देते हैं, जबकि मेडिकल साइंस के लिए उनमें से अनेक अंग दूसरों के जीवन में अमूल्य सम्भावनाएं प्रस्तुत कर सकते हैं। उपन्यासकार ने इसी तथ्य को सम्मुख रखकर इस उपन्यास की कथा को ‘अनूठी पहल’ कहकर नामित किया है। उपन्यास के इस तथ्य पर विचार किया जाए तो पाठक उपन्यास के कथानक को भूलकर प्रदत्त चिन्तन में ही खो जाता है और अकस्मात् लेखक के समर्थन में जुट जाता है, कथानक की रसात्मकता और विकास को लगभग भूल-सा जाता है।
किन्तु नहीं, लेखक की इस नई और प्रेरक सोच के साथ-साथ जब उपन्यास के कथानक पर हमारा ध्यान जाता है, तो वहां भी अनेक विशिष्टताएं और पाठकों के लिए अनेक पथ-दर्शन, युवा मानस के लिए जागृति एवं जीवन के समवेत् स्वरों को उभारा गया है। प्रभुदास द्वारा आढ़त का व्यवसाय, रामरत्न द्वारा कमाई के साधन जुटाना, खेती-बाड़ी को रसायन-मुक्त व्यवसाय में बदलने तथा इन उपयोगी साधनों से एक बड़े बिखरे परिवार को सहयोगी मार्ग दिखाने में भी लेखक सफल है। इसका श्रेय उपन्यासकार के आबकारी एवं कराधान आयुक्त के पद पर कार्य करने के विभिन्न अनुभवों को दिया जा सकता है।
सामाजिक दृष्टि से दीपक और प्रीति की सुखद गृहस्थी को सम्बल देना भी एक अनूठी पहल ही है। समाज में दहेज का कोढ़ जब तक निरस्त नहीं होता, तब तक प्रीति- मदन सरीखे दुखद आयामों का सामना करना ही पड़ता रहेगा। अच्छा किया कि उपन्यासकार ने दोनों में तलाक द्वारा विलगता लाकर एक नवीन सुखद जीवन को चैतन्य किया। सामाजिक दृष्टि से यह घटना अनेक की पथ-प्रदर्शक बन सकती है।
सरकार द्वारा देहदान के लिए प्रभुदास को पद्मश्री सम्मान दिया जाना आदि घटनाएं सामाजिक प्रेरणा तथा जन-मानस में देहदान के लिए उत्साह उत्पन्न करने के लिए प्रस्तुत की गई हैं। उपन्यासकार गर्ग ने आद्यंत इस उपन्यास में छोटी-छोटी जानकारी जुटाने का विशेष उपक्रम किया है। हां, उपन्यास में प्रभुदास का निधन दिखाना आवश्यक नहीं था। लेकिन उपन्यास ‘अनूठी पहल’ सार्थक प्रयास है, प्रेरक और उत्साहवर्द्धक है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यह पंक्ति इस उपन्यास में जागृति का प्रकाश है— ‘लीक पर वे चलें, जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं। हमें तो जो हमारी यात्रा से बने, ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।’
पुस्तक : अनूठी पहल लेखक : लाजपत राय गर्ग प्रकाशक : इंडिया नेट बुक्स, नोएडा पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 350.
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