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यथार्थ को टटोलता लघुकथा-संग्रह

पुस्तक समीक्षा
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‘दर्पण झूठ न बोले’ ऐसा लघुकथा-संग्रह है, जिसमें रोजमर्रा के जीवन से जुड़े प्रसंगों के माध्यम से समाज की कई परतें सामने आती हैं। कहानियां आकार में छोटी हैं, पर अधिकांश स्थितियां पाठक को ठहरकर सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। यह संग्रह केवल मनोरंजन नहीं देता, बल्कि जीवन और समाज को शांत, पर असरदार ढंग से देखने का नजरिया भी प्रदान करता है।

लेखक डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल की भाषा सरल और सीधेपन से भरी है। वे घटनाओं को बिना अलंकरण और बिना अनावश्यक भावुकता के प्रस्तुत करते हैं, जिससे कहानियां स्वाभाविक लगती हैं। ‘श्वान-प्रेम’, ‘सोच का दायरा’, ‘जीवन-साथी’ और ‘काला धन’ जैसी कहानियां सामाजिक संबंधों, व्यवहारों और स्थितियों को अलग-अलग कोणों से सामने रखती हैं। संवाद कम हैं, पर प्रसंगों की बुनावट उन्हें प्रभावी बनाती है।

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कुछ कहानियां अपेक्षा से पहले समाप्त होती महसूस होती हैं और कहीं-कहीं थोड़ा दोहराव भी दिखता है। इसके बावजूद, कई लघुकथाएं अपने अंत में एक ठहराव या अनकहा सवाल छोड़ जाती हैं, जो पाठक को उस स्थिति के बारे में दोबारा सोचने पर मजबूर करता है।

कुल मिलाकर, ‘दर्पण झूठ न बोले’ हमारे समय के भावनात्मक और सामाजिक माहौल को सूक्ष्मता से दर्ज करता है। यह संग्रह जीवन की साधारण घटनाओं में छिपे सच को बिना किसी शोर या आग्रह के सामने लाता है।

पुस्तक : दर्पण झूठ न बोले लेखक : डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल प्रकाशक : श्वेतांशु प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 96 मूल्य : रु. 250‍.

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