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इनसो अध्यक्ष प्रदीप देशवाल ने मदवि कुलपति के खिलाफ दर्ज कराई शिकायत

रोहतक, 22 अप्रैल (हप्र) महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के कुलपति पर करोड़ों रुपये के गबन व हेराफेरी के आरोप लगे हैं। इस संबंध में इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप देशवाल ने मदवि कुलपति के खिलाफ रोहतक के पीजीआई थाने में...

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रोहतक, 22 अप्रैल (हप्र)

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के कुलपति पर करोड़ों रुपये के गबन व हेराफेरी के आरोप लगे हैं। इस संबंध में इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप देशवाल ने मदवि कुलपति के खिलाफ रोहतक के पीजीआई थाने में शिकायत दर्ज कराई है। छात्रों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रदीप देशवाल के नेतृत्व में थाना प्रभारी से मुलाकात कर जल्द कार्रवाई की मांग की है। उधर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय की ओर से मामले में स्पष्टीकरण देते हुए सभी आरोपों को निराधार बताया है।

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शिकायत दर्ज कराने पहुंचे प्रदीप देशवाल ने बताया कि राजबीर सिंह एमडीयू व छात्रों के पैसे को दोनों हाथों से लुटा रहे हैं। कई बार पहले भी मदवि में धांधली व भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं परंतु इस बार सरकार के ऑडिट विभाग ने भी इसकी पुष्टि की है कि राजबीर सिंह ने बतौर कुलपति अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके विश्वविद्यालय को 2 करोड़ 50 लाख से ज्यादा का चूना लगाया है।

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प्रदीप देशवाल ने दावा किया कि एनुअल ऑडिट रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।

इस संबंध में सभी दस्तावेज व पुख्ता प्रमाण सहित पीजीआई थाने में शिकायत दर्ज कराकर आरोपियों के खिलाफ जल्द कार्रवाई की मांग की है। प्रदीप देशवाल ने बताया कि अगर किसी निष्पक्ष एजेंसी से कुलपति राजबीर सिंह के कार्यकाल की जांच कराई जाएगी तो 10 करोड़ से ज्यादा की धांधली निकल कर सामने आएगी। देशवाल ने आरोप लगाया कि एक राजनीतिक साजिश के तहत एमडीयू को कंगाल व बर्बाद किया जा रहा है,जो किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।

कुलपति का स्पष्टीकरण

वहीं, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय एवं कुलपति प्रो. राजबीर सिंह की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया है कि स्थानीय लेखा निदेशालय की टिप्पणियां केवल प्रशासनिक अनुपालना‑निरीक्षण हैं, इनमें कहीं भी गबन या धांधली का निष्कर्ष नहीं निकाला गया। ऑडिट पैरा में प्रो. राजबीर सिंह का व्यक्तिगत उल्लेख नहीं है, मुद्दा पूर्णतः प्रक्रिया ‑संबंधी है। विश्वविद्यालय की ओर से सफाई दी गई है कि सभी आरोप निराधार हैं जिनका हम खंडन करते हैं। विश्वविद्यालय की वित्तीय प्रणाली (ईआरपी) सक्षम है और प्रत्येक भुगतान डबल‑ऑथेन्टिकेशन के बाद ही स्वीकृत होता है। किसी भी सक्षम एजेंसी की मांग पर एमडीयू सभी अभिलेख उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है।

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