फगवाड़ा, 14 जनवरी (एजेंसी) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पंजाब के पूर्व मंत्री जोगिंदर सिंह मान ने शुक्रवार को पार्टी से 50 साल पुराना नाता तोड़ते हुए इस्तीफा दे दिया। अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के नेता मान करोड़ों रुपये के कथित पोस्ट-मैट्रिक एससी छात्रवृत्ति घोटाले के अपराधियों के खिलाफ ‘कोई कार्रवाई नहीं’ किये जाने और फगवाड़ा को जिला का दर्जा नहीं देने से नाराज थे। उन्होंने पार्टी और पंजाब कृषि उद्योग निगम के अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा दे दिया। सूत्रों ने बताया कि मान के आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल होने की संभावना है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में, फगवाड़ा के पूर्व विधायक ने कहा कि उनका एक सपना था कि वह एक कांग्रेसी के रूप में मरेंगे। उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के दोषियों को कांग्रेस का संरक्षण है, और ऐसे में मेरी अंतरात्मा मुझे यहां (पार्टी में) रहने की अनुमति नहीं देती है।’ मान बेअंत सिंह, राजिंदर कौर भट्टल और अमरेंद्र सिंह नीत सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने आरोप लगाया, ‘कैप्टन अमरेंद्र सिंह,नवजोत सिद्धू जैसे राजे महाराजे, धनाढ्य और अवसरवादी नेता जब से कांग्रेस में आये, उन्होंने अपने निहित स्वार्थों के लिये पार्टी का इस्तेमाल किया और पार्टी के सिद्धांत और मूल्य हाशिये पर चले गये। बस सबका एक ही मूल मंत्र रह गया कि किस तरह चुनाव जीतकर सत्ता को हथियाया जाये।’ एससी छात्रवृत्ति घोटाला 2020 में तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव की एक रिपोर्ट के बाद सामने आया था, जिसमें 55.71 करोड़ रुपये की कथित हेराफेरी का पता चला था। रिपोर्ट में तत्कालीन सामाजिक न्याय मंत्री साधु सिंह धर्मसोत की कथित रूप से घोटाले में शामिल लोगों को बचाने में भूमिका पर भी सवाल उठाया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव को जांच करने का निर्देश दिया था। आईएएस अधिकारियों की तीन सदस्यीय समिति के निष्कर्षों के आधार पर मुख्य सचिव की रिपोर्ट में धर्मसोत को दोषी नहीं बताया गया था। मान ने कहा कि वह पहले दिन से तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह और मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के सामने फगवाड़ा को जिला का दर्जा देने के मुद्दे को उठा रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि लेकिन इस पर कोई ध्यान देने के बजाय उन्होंने फगवाड़ा के निवासियों की लंबे समय से लंबित इस मांग को नजरअंदाज कर उनकी भावनाओं और आकांक्षाओं को ठेस पहुंचाई है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।