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पाक से पैतृक गांव देखने पहुंचे फाकिर हुसैन

आजादी के बाद पिता चले गए थे पाकिस्तान, चाहकर भी नहीं मिला था इंडिया का वीजा

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संगरूर के गांव कौहरियां में फाकिर हुसैन स्थानीय लोगों के साथ। -निस
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गुरतेज सिंह प्यासा/ निस

संगरूर, 16 मार्च

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जब देश का बंटवारा हुआ तो लोगों को अपना घर-बार छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा और तमाम लोगों को वहां से निकलकर भारत आना पड़ा। ऐसे ही लोगों में से एक हैं फकीर हुसैन, जो करीब डेढ़ महीने के वीजा पर पाकिस्तान से दिड़बा के कौहरियां गांव में अपने चाचा-चाची और परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने आए हैं। फाकिर हुसैन ने बताया कि उनके पिता देश के बंटवारे के दौरान यहां से जिला बहावलपुर चले गए थे। उनके पिता पांच भाई थे, चार भारत में ही रह गए। जब से मेरे पिता पाकिस्तान में बसे, पंजाब उनके दिल से कभी नहीं भूला। वैसे तो लहिंदे पंजाब में खेती के साथ-साथ हमारा अच्छा कारोबार भी है, लेकिन उभरते पंजाब की मिट्टी की खुशबू हमें बहुत याद आती है। अपनों से बिछड़ने के दर्द की चीख हमेशा दिलों से उठती है। बकौल फाकिर, मेरे पिता पंजाब आने की लालसा में 24 घंटों में से 12 घंटे रोते थे। विभाजन के बाद मेरे पिता पाकिस्तान चले गए, तब से आज तक एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब वह अपने परिवार के सदस्यों की याद में न रोए हों। कभी-कभी उनका पूरा दिन नम आंखों में बीत जाता था। उन्होंने पंजाब आने की लाख कोशिशें की, लेकिन उन्हें वीज़ा नहीं मिला तो उन्हें भगवान की दरगाह का वीज़ा मिल गया, यानी उनकी मौत हो गई। अब, जबकि मैं अपने बिछुड़े हुए परिवार से मिलकर अधिक खुश हूं, मुझे अफसोस है कि काश यह मुलाकात मेरे पिता के जीवित रहते हुए होती।

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