रवि पाठक/निस
कपूरथला, 7 फरवरी
पंजाब की राजनीति में डेरों का खासा प्रभाव है। डेरों के समर्थकों की बढ़ती तादाद एक बड़े वोट बैंक में तब्दील हो गई है। डेरे सूबे की कई सीटों पर जीत-हार तय करने की ताकत रखते हैं। पंजाब में सामाजिक व आर्थिक स्तर पर भेदभाव और डेरों में जाति, धर्म का बंधन न होने की वजह से लोग डेरों से जुड़े और बड़ी संख्या में लोगों ने इनसे जुड़ने के बाद नशा भी छोड़ा। यही वजह है कि डेरों की ताकत बढ़ती जा रही है। पंजाब की राजनीति में धार्मिक डेरों का अच्छा खासा प्रभाव है और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी तमाम राजनीतिक दल इन धार्मिक डेरों पर डोरे डालने में लगे हैं। डेरों की स्थिति यह है कि एक पार्टी के नेता ही माथा टेककर आशीर्वाद लेकर निकल रहे हैं तो दूसरी पार्टी के नेता भी दौड़ते डेरों में पहुंच रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अगर डेरों के धर्म गुरुओं ने अपने अनुयायियों की लाखों की तादाद को एक इशारा भी कर दिया तो राजनीतिक दलों को इन डेरों से अच्छा खासा वोट हासिल हो सकता है। डेरों का राजनीति में कितना दखल है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल से लेकर पंजाब के सीएम चन्नी और सुखबीर बादल डेरों पर लगातार नतमस्तक हो रहे हैं। पंजाब में करीब 300 डेरे हैं लेकिन इनमें से 12 डेरों के समर्थकों की संख्या लाखों में है। पंजाब की सियासत में डेरों का प्रभाव नया नहीं है। राधास्वामी ब्यास, सच्चा सौदा, निरंकारी, नामधारी, दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, डेरा संत भनियारावाला, डेरा सचखंड बल्लां, डेरा बेगोवाल, बाबा कश्मीरा सिंह का डेरा शामिल हैं।
डेरा सच्चा सौदा का 35 सीटों पर प्रभाव
सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की तादाद करीब चार करोड़ मानी जाती है। इस डेरे के अनुयायी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में हैं। गुरमीत राम रहीम पर कई संगीन मामलों की सुनवाई अदालत में चल रही है। हत्याकांड व यौन शोषण मामलों में दोषी पाए जाने के बाद सजा भी हुई लेकिन आज भी उनके अनुयायियों की संख्या अच्छी खासी है। आज भी नाम चर्चा होती है और उनका राजनीतिक विंग काम कर रहा है। इस डेरे का पंजाब की सियासत के गढ़ मालवा की 35 सीटों पर प्रभाव है। 2007 में डेरे ने कांग्रेस को समर्थन दिया, जिसके बूते पार्टी ने मालवा में शानदार जीत दर्ज की थी।
राधास्वामी डेरा का भी मजबूत आधार
ब्यास स्थित राधास्वामी डेरे का पूरे पंजाब में मजबूत आधार है। पंजाब ही नहीं, कई राज्यों से लेकर विदेश तक में डेरे के समर्थक फैले हैं। पंजाब ही नहीं, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में सभी जिलों में इनके सत्संग घर बने हैं। बाबा जैमल सिंह जी ने 1891 में डेरे की स्थापना की थी। यह डेरा हमेशा से सियासत से दूर रहा। समर्थकों की बड़ी तादाद के बावजूद डेरा चुनावों पर हमेशा मौन रहा। खुले तौर पर किसी की मदद की घोषणा नहीं की जाती लेकिन डेरे का जमीनी स्तर पर संगठन है, वहां तक संदेशा पहुंचता है कि किस उम्मीदवार की मदद करनी है।
दोआबा में दबदबा रखता है डेरा सचखंड
जालंधर के पास बल्लां स्थित डेरा सचखंड रविदास बिरादरी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। बिरादरी के सभी फैसले यहीं से होते हैं। डेरे ने वाराणसी में गुरु रविदास जी के जन्मस्थान पर धार्मिक स्थल का निर्माण कराया है। हर साल रविदास जयंती पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं को वाराणसी ले जाया जाता है। डेरे का दोआबा में खासा प्रभाव है। रविदासिया समाज ही दोआबा में जीत-हार का फैसला करता है। यहां हाल ही में सुखबीर बादल माथा टेककर गए। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर चरणजीत चन्नी भी नतमस्तक हो चुके हैं। चन्नी रविदासिया समाज से हैं। जालंधर के पास नूरमहल स्थित संस्थान का प्रभाव पंजाब ही नहीं, देश के कई हिस्सों में है।